जिला फरीदाबाद में सरकारी स्कूलों में गिरता शिक्षा एवं अनुशासन का स्तर के बारे सभी जानते हैं। इसका सबसे बढ़िया उद्वाहरण इस साल का दसवीं कक्षा का बोर्ड परिणाम रहा। जिसमें केवल मात्र 65 प्रतिशत बच्चे ही उतीर्ण हो पाये। इसका एक प्रमुख कारण सरकारी अध्यापकों एवं अधिकारियों का इस ओर ध्यान न देना है। यह बात सामाजिक कार्यकर्ता अजय बहल ने कही। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा विद्यालयों तथा कार्यालयों में कार्यरत अधिकारियों एवं अध्यापकों की कार्यस्थल पर दैनिक उपस्थिति दर्ज करने के लिए बायोमेट्रिक हाजरी की प्रणाली वर्ष 2015 में शुरू की थी। लेकिन कुछ समय बीत जाने पर इस व्यवस्था का भी इस्तेमाल बंद कर दिया गया। नतीजा अध्यापक अपने कार्यस्थल पर समय से नहीं आते जाते और शहर से बाहर दूर दराज के गांवों में तो स्थिति और भी खराब है।
एक तो प्रदेश में सरकारी शिक्षकों की पहले ही कमी है। ऊपर से इस प्रकार की अव्यवस्था से गंभी र परिणाम होते हैं। इस बारे में व्यवस्था को सुचारू बनाने के उद्देश्य से अजय बहल ने 24 नवंबर 2019 को जिÞले के विभिन्न सरकारी विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों की दैनिक बायोमेट्रिक उपस्थिति का ब्यौरा सूचना का अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत मांगा था।
जिसका कोई भी संतोषजनक उत्तर शिक्षा विभाग फरीदाबाद द्वारा दो वर्ष से अधिक समय बीत जाने पर भी नहीं दिया। मामले की शिकायत आवेदक अजय बहल द्वारा हरियाणा राज्य सूचना आयोग में दी गई। लंबे समय तक चली सुनवाई उपरांत राज्य सूचना आयोग ने फरीदाबाद की जिला शिक्षा अधिकारी मुनेश चौधरी पर पच्चीस हजार रुपये का जुमार्ना लगाने के आदेश दिये। जुमार्ने की राशि को जिÞला शिक्षा अधिकारी के वेतन से वसूल किया जाएगा। वहीं जब इस विषय में देश रोजाना संवाददाता कविता ने मुनेश चौधरी से बात करने का प्रयास किया गया तो उन्होंने फोन नहीं उठाया।