राजेश दास। फरीदाबाद
एनआइटी इलाके के एनएच एक, दो, तीन और पांचको बेहद योजना बंद तरीके से बसाया गया था। इन इलाकों की हर गली और मुख्य सड़कों के दोनों तरफ नालियां थी। बरसात आने पर इन नालियों के जरिए पानी सीधा नहर में पहुंच जाता था। करीब दो से तीन दशक पहले बरसात के बाद यहां की सड़कों पर जलभराव की समस्या उत्पन्न नहीं होती थी। लेकिन नगर निगम की लापरवाही से ज्यादातर इलाकों में लोगों ने नालियां बंद कर दी है। जिससे बरसाती और लोगों के घरों का पानी सीवर की लाइनों में डाला जाता है। ऐसे में सीवर ओवरफ्लो की समस्या गंभीर होती जा रही है। जिसे ध्यान में रखते हुए इन इलाकों में सीवर की नई लाइनें डालने के लिए 160 करोड़ रुपये की परियोजना बनाई है। जबकि इस इलाकों को ही नहीं बल्कि पूरे शहर को ड्रेनेज सिस्टम की ज्यादा जरूरत है। ड्रेनेज सिस्टम बनाने से जहां सीवर लाइनों का बोझ कम होने से ओवरफ्लो की समस्या खत्म हो जाएगी, वहीं बरसाती पानी सड़कों पर जमा होने की बजाए जमीन को रिचार्ज करने का काम करेगा।
बिना योजना के हो रहे विकास
नगर निगम ने एनआइटी में तारकौल की जगह आरएमसी की सडके बना दी। सडकों के निर्माण में लापरवाही बरतते हुए काफी संख्या में मैनहॉल दबा दिये। ऐसे मेंनगर निगम के कर्मचारी चाह कर भी ठीक तरीके से सीवर लाइनों की सफाई नहीं कर पाते। वहीं सीवर की लाइनों में सफाई के दौरान भारी मात्रा में प्लास्टिक और मलवा निकलता है। इस तरह की समस्याओं का समाधान करने की बजाए अब नगर निगम ने एनआइटी इलाके में सीवर की लाइनों को दोबारा डालने की 160 करोड़ रुपये की परियोजना जल्दी ही शुरू की जानी है। ऐसे में करोड़ों रुपये की लागत से हाल ही में बनी एनआइटी की तमाम सडकों को सीवर लाइन डालने के लिए फिर उखाड़ना पड़ेगा। लाइनें डालने के बाद सरकार को फिर सडकों के निर्माण पर भारी भरकम रकम खर्च करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
ड्रेनेज सिस्टम हल करेगी समस्या
नगर निगम की लापरवाही के कारण शहर में ड्रेनेज सिस्टम के नाम पर कुछ भी मौजूद नहीं है। एनएच एक, दो, तीन और पांच की सभी गलियों और सड़कों के किनारे स्थित नालियों को लोगों ने बंद कर बड़े बड़े रैम्प बना दिए हैं। इलाके की कुछ मुख्य सड़कों पर नालियां तो हैं, लेकिन नालियों पर लोगों ने पक्के स्लैब बनाकर अतिक्रमण किया हुआ है। जिससे नालियों की सफाई नहीं हो पाती। जिससे नालियां बुरी तरह जाम हो चुकी हैं। वहीं शहर की कुछ नालियों को नगर निगम के कर्मचारियों द्वारा लापरवाही बरतते हुए सीवर की लाइनों के साथ कनेक्ट किया हुआ है। ऐसे में एनआइटी के इन चारों इलाकों में सीवर ओवरफ्लो की समस्या उत्पन्न होती है। नगर निगम और लोगों की लापरवाही के कारण बरसाती पानी को निकलने की जगह नहीं मिली और वह सड़कों में बहता रहता है।
गिर रहा है शहर का भूजल स्तर
यदि शहर में ड्रेनेज सिस्टम सही तरीके से बनाया जाता तो बरसात में लोगों को इतनी परेशानी नहीं झेलनी पड़ती। नालियों के जरिये रिहायशी इलाकों का बरसाती पानी बड़े नालों के जरिये यमुना नदी और नहरों में जाकर जमीन को रिचार्ज करने का काम कर सकता था। जिससे बरसात के मौसम में लोगों को इतनी परेशानियां उठाने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ता। लेकिन इस तरफ नगर निगम और अन्य विभागों द्वारा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। करीब तीन दशक पहले तक जिले में भूजल 15 से 20 फीट की गहराई में उपलब्ध था। लेकिन अब इन लापरवाहियों के कारण बरसाती पानी जमीन को रिचार्ज नहीं कर पाता है। ऐसे में जिला डार्क जोन में शामिल हो चुका है। जिससे नगर निगम के अधिकारियों को ड्रेनेज सिस्टम बनाने की तरफ ध्यान देने की ज्यादा जरूरत है।
रहने लायक नहीं रहेगा शहर
समाजसेवी रविंद्र चावला का कहना है कि ड्रेनेज सिस्टम के अभाव में बरसात आते ही शहर की सड़कें पूरी तरह जलमग्न हो जाती है। जिससे लोगों को तो परेशानी हो ही रही है, साथ ही पर्यावरण को भी नुकसान हो रहा है। यदि ऐसे ही बरसाती पानी रिचार्ज न होने से भूजल स्तर गिरता रहा तो आने वाले कुछ सालों के बाद यह शहर रहने लायक नहीं रहेगा।