राजेश दास
नगर निगम और अन्य संबंधित विभागों ने पूरे शहर में चारों तरफ कंकरीट की सड़कों का जाल बिछा दिया है। सड़कों के दोनों तरफ टाइल्स लगाकर पक्का किया जा रहा है। ग्रीन बेल्टों पर लोगों ने रैम्प बनाकर कब्जा किया हुआ है। ऐसे में बरसाती पानी को जमीन में जाने की जगह नहीं मिलती। जिसके कारण जहां जिले का भूजल स्तर तेजी के साथ गिरता जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ बरसाती पानी की निकासी न होने के कारण जल भराव और कई तरह की समस्याएं उत्पन्न हो रही है। एक आध जगह नहीं बल्कि पूरे शहर की यहीं स्थिति है। कंकरीट के जाल से चैन्नई और बेंग्लूरु में भूजल दो हजार फीट नीचे भी उपलब्ध नहीं है। यहां भी यहीं स्थिति उत्पन्न हुई तो शहर के लोग पानी की बूंद बूंद के लिए तरस जाएंगे। जिसे देखते हुए हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई को दौरान संज्ञान लेते हुए एचएसवीपी को ग्रीन बेल्टों की स्थिति में सुधार करने और बरसाती पानी को रिचार्ज करने की व्यवस्था करने के आदेश दिये है। इससे पहले एनजीटी ने भी नगर निगम को ग्रीनबेल्ट से कब्जे हटाने के आदेश दिये थे।
उद्यान शाखा की बेरूखी है कारण
नगर निगम और हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण के पास अपनी अपनी उद्यान शाखाएं मौजूद है। लेकिन ग्रीनबेल्ट की हालत को देखकर आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उद्यान शाखाएं कैसा काम कर रही हैं। शाखाओं में तैनात अधिकारियों की रूचि ग्रीन बेल्टों में हरियाली करने की तरफ बिल्कुल भी दिखाई नहीं देती। उद्यान शाखाओं की रूचि पार्को में कनॉपी, झूले, स्टील के बैंचलगवाने में ज्यादा रहती है। पार्को में हरियाली हो या न हो लेकिन इन चीजों के लिए बजट की कमी कभी महसूस नहीं की जाती। इससे अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि इन चीजों पर आखिरकार क्यों सरकारी धन खर्च किया जाता है। यदि इन दोनों ही विभागों की उद्यान शाखाएं शहर की ग्रीनबेल्ट और पार्को के रख रखाव पर जरा भी ध्यान देती तो आज शहर की स्थिति इतनी गंभीर नहीं होती।
अदालती आदेश भी रहे बेअसर
ज्यादातर ग्रीन बेल्टों पर लोगों ने कब्जे कर अवैध दुकानों, रेहड़ी और खोमचों लगाए हुए हैं। कई स्थानों पर ग्रीन बेल्टों पर पक्के निर्माण हैं। सेक्टरों में कई स्थानों पर लोगों ने ग्रीनबेल्ट की जमीनों पर कब्जे कर अवैध तरीके से रैम्प बनाए हुए हैं। वहीं कई स्थानों पर निगम, एचएसवीपी अथवा विकास कार्य करवाने वाली एजेंसियों के ठेकेदारों द्वारा निर्माण सामाग्री डाली जाती है। एक मामले की सुनवाई के दौरान चार साल पहले एनजीटी ने नगर निगम को शहर की तमाम ग्रीन बेल्टों से अवैध कब्जे हटाने के आदेश दिये थे। उस समय निगम की तरफ से एक दो स्थानों पर दिखावे के लिए अवैध कब्जों को हटा दिया गया। जहां बाद में फिर से अवैध कब्जे हो गए। इन विभागों की लापरवाही के कारण शहर से हरियाली लगातार गायब होती जा रही है और हवा में जहर घुलता जा रहा है।ॉ
करोड़ों रुपये खर्च, परिणाम शून्य
जिला वन विभाग द्वारा पिछले कुछ सालों के दौरान अरावली के वन क्षेत्र में लाखों की संख्या में पौधे और उनकी सुरक्षा के लिए ट्रि गार्ड तो लगा गए है। लेकिन इनकी हालत से साफ है किकभी भी इन पौधों की सिंचाई नहीं की गई है। जबकि पौधों की सिंचाई के लिए वन विभाग की तरफ से टैंडर भीजारी किये जाते हैं। यदि विभाग ने टैंडर जारी किया है तो सिंचाई न करने पर ठेकेदार के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की। यदि टैंडर जारी नहीं किया गया तो पौधे की सिंचाई के लिए बनाया गया बजट आखिर कहां खर्च किया गया है। वहीं दूसरी तरफ कुछ सामाजिक संस्थाओं द्वारा भी अरावली पर लगे पौधों की सिंचाई करने के दावें किये जाते हैं। लेकिन इसके बावजूद लाखों पौधे कैसे मर गए, यह किसी को नहीं पता