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लापरवाही : जान जोखिम में डाल रही शहर में बनी अवैध व्यवसायिक इमारतें

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नगर निगम की लापरवाही एवं भ्रष्टाचार से शहर में कभी भी बड़ा हादसा  हो सकता है। शहर में कायदे कानून ताक पर रखकर बनाई गई व्यवसायिक इमारतों में आग जाए तो लोगों को बचने का रास्ता भी नहीं मिलेगा। पिछले दिनों नेहरू ग्राउंड में एक ज्वैलरी शोरूम में रात के समय आग लगी थी। यदि घटना दिन में होती तो स्थिति गंभीर हो सकती थी। इस घटना के बाद भी निगम ने कोई कदम नहीं उठाया। अब बृहस्पतिवार को एनएच एक मार्केट में एक ज्वैलरी शोरूम के ऊपर की मंजिल में आग लग गई। गनीमत था कि घटना दोपहर को हुई। यदि शाम को घटना होती तो फायर ब्रिगेड को मौके पर पहुंचने की जगह ही नहीं मिलती। क्योंकि निगम की अघोषित छूट के कारण पूरी मार्केट में अतिक्रमण हो चुका है। यहां तक कि दुकानदार फुटपाथ का भी किराया वसूल रहे हैं। इतनी गंभीर स्थिति होने के बावजूद निगम आयुक्त ने ध्यान देने की जरूरत महसूस नहीं की।

कायदे कानून सब ताक पर

शहर के बाजारों और रिहायशी इलाकों में कायदे कानून ताक पर रख कर बड़े बड़े शो रूमों का निर्माण किया जा रहा है। इन इमारतों के छज्जे सड़क पर कई फीट आगे तक निकले हुए हैं। इतना ही नहीं इन छज्जों के ऊपर ही शीटें लगाकर पूरी बिल्डिंग को कवर्ड कर दिया जाता है। जिससे वैंटीलेंशन के लिए जगह ही नहीं बचती। ऐसे में यदि इन इमारतों में आग लग जाए तो लोगों को जान बचाकर निकलने की जगह भी नहीं मिल पाती। नेहरू ग्राउंड और एनएच एक में स्थित आग काशिकार हुई शोरूम की इमारतें भी कुछ इसी तरहसे बनी हैं। इन शोरूमों  की वजह से आसपास की अन्य इमारतों में आग लग सकती है। दोपहर को आग लगने के दौरान शोरूम और बाजार में जरा भी भीड़ नहीं थी। यदि घटना शाम को होती तो स्थिति बिगड़ भी सकती थी।

रिहायशी क्षेत्र में व्यवसायिक गतिविधि

शहर भर में रिहायशी इलाकों में खुलेआम व्यवसायिक गतिविधियां चल रही हैं। फरवरी 2019 में हाईकोर्ट ने रिहायशी इलाकों में चल रही व्यवसायिक गतिविधियों को बंद करवा कर 20 मार्च 2019 को रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिए थे। उस समय निगम ने खानापूर्ति कर कर्तव्य पूरा कर दिया था। शहर में सेक्टर 24, 25, 27, 10, 6 और एनआईटी औद्योगिक क्षेत्र हैं। लेकिन इन औद्योगिक क्षेत्रों में जितनी फैक्ट्रियां चल रही हैं, उससे ज्याद संख्या में कार खाने रिहायशी इलाकों में चल रहे हैं। कई कार खाने से तो ऐसी तंग गलियों में चल रहे हैं, जहां फायर ब्रिगेड भी नहीं पहुंच पाती। इसके अलावा शहर के विभिन्न रिहायशी इलाकों में कबाड़े के गोदाम तक चलाए जा रहे हैं। कारखानों और गोदाम संचालकों के पास फायर ब्रिगेड की एनओसी तो दूर आग बुझाने के उपकरण तक मौजूद नहीं होते हैं।

सरकार को राजस्व का नुकसान

औद्योगिक जमीन का व्यवसायिक इस्तेमाल करने के लिए सीएलयू करवाना होता है। साथ ही प्लॉट काटने से पहले सबडिविजन कराना जरूरी होता है। इन जमीनों का एक सीमित सीमा तक ही सबडिविजन करवाया जा सकता है। यदि प्लॉट काटने वाले नियमों के मुताबिक प्लॉटिंग करें तो उन्हें सरकार को शुल्क चुकाने पड़ेगे। जिससे सरकार को काफी राजस्व मिल सकता है। रिहायशी जमीन का भी सीएलयू के बिना व्यवसायिक इस्तेमाल नहीं हो सकता। लेकिन निगम के अधिकारी इस ओर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं। शहर भर में हजारों की संख्या में अवैध निर्माण चल रहे हैं। यदि नगर निगम अवैध निर्माण करने वाले लोगों की नकेल कसे तो सरकार को करोड़ों रुपये की आय हो सकती है। लेकिन अधिकारियों की लापरवाही से सरकार को राजस्व का नुकसान तो हो ही रहा है। साथ शहर की सूरत भी बिगड़ती जा रही है।

जिम्मेदारों पर नहीं होती कार्रवाई

समाजसेवी गुरमीत सिंह देओल का कहना है कि अवैध निर्माण के जिम्मेदारों पर कार्रवाई नहीं की जाती। कार्रवाई के अभाव में अवैध निर्माण को बढ़ावा और हादसों को न्यौता मिल रहा है। निगम अधिकारियों की मिली भगत से सरकार को राजस्व का नुकसान हो रहा है। सरकार को उच्चस्तरीय जांच करवा कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।

राजेश दास

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