स्वच्छ भारत अभियान के तहत शहर भर में पब्लिक टॉयलेट बनाए गए थे। लेकिन इनमें से करीब 90 प्रतिशत टॉयलेट कंडम हो चुके हैं। शेष दस प्रतिशत टॉयलेट का ताला न खुलने से वे भी अब इस्तेमाल करने योग्य नहीं रहे। लेकिन इसके बावजूद नगर निगम द्वारा इन टॉयलेटों के रख रखाव का लाखों रुपये भुगतान किया जाता है। करीब दोसाल पहले निगम की मेयर सुमन बाला ने टॉयलेट घोटाले का जनता के सामने पदार्फाश किया था। पोल खुलते देख मौके पर मौजूद एसडीओ ने मेयर के साथ ही दुर्व्यवहार कर दिया था। हालांकि बाद में इस एसडीओ को निलंबित तो कर दिया गया। लेकिन कुछ समय बाद ही जांच लंबित कर एसडीओ को बहाल कर दिया। इसके अलावा मेयर ने स्वच्छ भारत अभियान के तहत भेजी गई करोड़ों रुपये के ग्रांट के दुरूपयोग की शिकायत भी सरकार को भेजी थी। लेकिन इस शिकायत पर भी सरकार ने आज तक कार्रवाई नहीं की। यदि इसकी गहनता से जांच हो तो बड़ा घोटाला उजागर हो सकता है।
विजिलेंस जांच की मांग की थी
मेयर सुमन बाला ने करीब डेढ़ साल पहले सरकार को पत्र लिख कर स्वच्छ भारत अभियानके तहत भेजी गई ग्रांट की जांच स्टेट विजिलेंस से कराने की मांगकी थी। जिसमें उन्होंने लिखा था कि अभियान के तहत वर्ष 2015 से 2021 के बीच 12 करोड़ रुपये के घटिया किस्म के टॉयलेट खरीदे और लगाए गए हैं। इन टायॅलेटों को न सीवर लाइन से जोड़ा गया और न इनमें पानी की टैंकी लगाई। वहीं टॉयलेट बताई गई संख्या से काफी कम हैं। स्वच्छता के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए नुक्कड़ नाटक आयोजित करने के लिए एक एजेंसी को एक करोड़ रुपये दिये गए। लेकिन कहीं नुक्कड़ नाटक नहीं हुए। शहर में जेसीबी से सफाई करवाने के लिए पैसे तो दिये गए। लेकिन सफाई नहीं हुई। मेयर ने सरकारी धन का दुरूपयोग करने का आरोप लगाया था।
कार्रवाई के अभाव में बेलगाम
जनता के सामने टॉयलेट घोटाला उजागर करने पर निगम के एसडीओ ने मेयर सुमन बाला से दुर्व्यवहार किया था। ऐसे में अधिकारी जनता से कैसा सलूक करते होंगे, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। लेकिन हद तो तब होती है, जब मेयर से दुर्व्यवहार करने वाले अधिकारी को कुछ दिनों तक निलंबित कर फिर बहाल कर दिया जाता है। पिछले डेढ़ साल से मामले की जांच लंबित पड़ी हुई हैं। वहीं दूसरी तरफ मेयर ने शहर की आम जनता के सामने टॉयलेट घोटाले काभी पदार्फाश किया था। लेकिन मामले को हुए करीब डेढ़ साल का समय गुजर जाने के बाद भी इस तरफ किसी ने ध्यान देने की जरूरत महसूस नहीं की। मेयर का कार्यकाल पूरा हो चुका हैं। जिससे अब टॉयलेट घोटाला और दुर्व्यवहार करने वाले अधिकारी की जांच की फाइल भी दब कर रह जाएगी।
व्यर्थ हो गए करोड़ों रुपये
दिखावे के इन शौचालयों का निर्माण घाटिया सामाग्री से किया गया था। निर्माण के कुछ दिनों बाद ही शौचालय जर्जर होने लगे थे। कुछ शौचालयों पर पानी की टैंकियां तो रखवादी थी। लेकिन इन टैंकियों में पानी भरने के लिए कनेक्शन देने की कोई जरूरत महसूस नहीं की। ऐसे में इस्तेमाल करने वालों को पानी घर से लाना पड़ता था। इन शौचालयों में न तो सीवर के कनेक्शन दिये गए हैं और न ही निगम ने नियमित रूप से सफाई करवाने के लिए भी कोई नहीं व्यवस्था की है। जिससे शौचालय कुछ ही दिनों में बुरी तरह गंदे हो गए और लोगों ने इनका इस्तेमाल बंद कर दिया। नगर निगम द्वारा बनाए गए करीब 90 प्रतिशत से ज्यादा शौचालय कंडम हो चुके हैं। शेष शौचालयों में ताले लटके होने की वजह से अब यह इस्तेमाल करने योग्य नहीं रह गए।
मामले में निष्पक्ष जांच जरूरी
समाज सेवी गुरमीत सिंह देओल का कहना है कि टॉयलेट पर खर्च हुए करोड़ों रुपये व्यर्थ हो गए। कई बाजारों में सार्वजनिक शौचालय का अभाव है। निगम द्वारा बनाए शौचालय अब इस्तेमाल के योग्य नहीं रहे। लोगों को मजबूरी में खुले में लघुशंका अथवा शौच के लिए जाना पड़ता है। यदि इस मामले की निष्पक्ष जांच की जाए तो बड़ा घोटाला उजागर हो सकता है।
–राजेशदास