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स्मार्ट सिटी प्राइवेट लिमिटेड :सरकारी धन का दुरूपयोग करने की परियोजना

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शहर को सुंदर और स्वच्छ बनाने के लिए पीएम मोदी ने देश के 100 शहरों में फरीदाबाद का चयन भी स्मार्ट सिटी परियोजना के लिये किया था । शहर को स्मार्ट बनाने के लिए प्रदेश सरकार ने स्मार्ट सिटी प्राइवेट लिमिटेड के नाम से अलग विभाग का गठन भी किया था । लेकिन एससीपी एल शहर को स्मार्ट बनाने कीआड़ में केंद्र सरकार की तरफ से भेजे गए सरकारी धन का लगातार दुरूपयोग करता रहा है। परियोजना के तहत शुरू हुए अनेक काम आज भी अधूरे हैं। अब स्मार्ट का कार्यकाल एक साल बढ़ने के बाद भी अधूरे कामों को पूरा करने की बजाए स्मार्ट सिटी द्वारा निगम को 20 करोड़ रुपये के उपकरण दिये जा रहे हैं । स्मार्ट सिटी द्वारा निगम को जो उपकरण दिये जा रहे हैं , उनसे संबंधित काम निगम ने ठेके पर दिये हुए हैं। ऐसे में इन उपकरणों का फायदा निगम की बजाए ठेके दारों को होगा।पिछले दिनों निगम द्वारा ईकोग्रीन को टैक्टर ट्रॉलियों देने का मामला काफी तूल पकड़ा था।

फिजुल में दे रहे 20 करोड़ के उपकरण

शहरकी जनता मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रही है। लोगों की समस्याएं दूर करने की बजाए एससीपीएल द्वारा अपने अधूरे कामों को पूरा करने की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। एससीपीएल द्वारा बनाए गए करोड़ों के नाले कनेक्ट न होने से व्यर्थ पड़े हैं। लेकिन इसके बावजूद एससीपीएल द्वारा नगर निगम को 20 करोड़ रुपये के उपकरण दिये जा रहे हैं। निगम की दी जाने वाली मशीनरी में कूड़ा उठाने वाले 800 रिक्शे, पानी पहुंचाने के 20 टैंकर, 70 हाईड्रोलिक ट्रॉली, 5 छोटी और दस बड़ी फोगिंग मशीन, सीवर साफ करने को वकेट मशीन, हर विधानसभा क्षेत्र के लिए स्ट्रीट लाइट लोडर मशीनें शामिल हैं।साथ ही एससीपीएल एक सूपरसकर मशीन भी खरीद रहा है।जबकि निगम के पास इस तरह के उपकरण निगम सभागार में धूल फांक रहे हैं।

ठेके पर दिये हुए हैं ज्यादातर काम

नगर निगम द्वारा कर्मचारियों के अभाव का बहाना बनाते हुए अपने ज्यादातर काम ठेके पर दिये हुए हैं। निगम ने तीनों जोनों में सीवर की सफाई का ठेका दिया हुआ है। बदले में ठेकेदारों को करोड़ों का भुगतान करने के बाद भी सीवर व्यवस्था चरमराई रहती है। सूपरसकर और वकेट मशीनों का फायदा ठेकेदारों को मिलेगा। गर्मी में पानी की किल्लत होने पर टैंकर ठेकेदारों से मंगवाए जाते हैं।ऐसे में मिलने वाले 20 टैकर पहलेसे मौजूद टैंकर की तरह व्यर्थ खड़े रहेंगे। खराब स्ट्रीट लाइटों को बदलने के काम का निगम ने ठेका दिया हुआ है। यह ठेकेदार पहले ही निगम की मशीनरी इस्तेमाल कर रहा है, इसे अब और फायदा होगा। जबकि लाइटें बदलने का ठेका देने की कोई जरूरत नहीं है। क्योंकि एलईडी उपलब्ध करवाने वाले ठेकेदार की लाइटें बदलने की जिम्मेदारी है।

निजी स्वार्थ में दिया जाता है ठेका

ऐसा नहीं है निगम के पास लोगों को मूलभूत सुविधाएं देने के लिए संसाधन नहीं है। सीएसआर फंड के तहत निगम को समय समय पर करोड़ों रुपये के उपकरण मिलते रहते हैं। ऐसे में निगम कर्मचारियों की कमी आउट सोसिंग से पूरी कर इन उपकरणों का इस्तेमाल कर कम लागत में लोगों को सुविधाएं दे सकता है। लेकिन निगम द्वारा निजी स्वार्थ के लिए ज्यादातर कामों का ठेका दिया हुआ है । ऐसे में सरकार द्वारा खरीदे हुए और सीएसआर फंड के तहत मिलने वाले उपकरण निगम द्वारा इस्तेमाल करने के लिए या तो ठेकेदारों को दे दिये जाते हैं या फिर धूल फांकते रहते हैं। पिछले दिनों निगम अधिकारियों ने सीएसआर के तहत मिली 125 ट्रैक्टर ट्रॉलियां ईकोग्रीन को सौंप दी थी। मामला एंटी करप्शन ब्यूरों में पहुंचने पर निगम को ट्रैक्टर ट्रॉलियां वापस लेनी पड़ गई थी।

कामों की जांच कराना जरूरी

समाज सेवी जगजीत कौर का कहना है कि स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत शहर में जमीनी स्तर पर कोई काम नहीं हो रहा है। ठीक ठाक सडकों को उखाड़ कर नया बनाया गया है। अन्य कई तरह के फिजुल के कामों में सरकारी धन की जमकर बबार्दी की गई है। यदि किसी केंद्रीय एजेंसी से जांच करवाए तो यहां भी एक बड़ा घोटाला उजागर हो सकता है।

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