सूरजकुंड। राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई दशक से बहादुरगढ़ हरियाणा का विख्यात हस्त शिल्पी राजेंद्र बोंदवाल का परिवार हस्तशिल्प के क्षेत्र में धूम मचा रहा है। चंदन, कदम और अन्य उमदा किस्म की लकड़ी पर हस्त कारीगीरी में निपुण बोंदवाल परिवार ने पारंपरिक कला को आगे बढ़ाने का काम किया है। 37 वें अंतरराष्ट्रीय शिल्प मेला में शिल्पी राजेंद्र बोंदवाल की कृतियां मेला देखने आए पर्यटकों पर अनूठी छाप छोड़ रही हैं।
दिनभर कला प्रेेमियों का तांता
आपको बता दें कि जिला झज्जर के शहर बहादुरगढ के विख्यात शिल्पी राजेंद्र बोंदवाल को इस बार सूरजकुंड मेले में स्टॉल नंबर-1245 अलाट हुई है, जिस पर दिनभर कला प्रेेमियों का तांता लगा रहता है। इस स्टाल पर चंदन और दूसरी लकड़ी से बने लाकेट, ब्रेसलेट, मालाएं, खिलौने, जंगली जानवरों की कृतियां, देवी-देवताओं की आकर्षक मूर्तियां उपलब्ध हैं। मेला में पहुंचे पयर्टक दिल्ली निवासी अशोक वत्स, ओजस्वी, नेहा आदि ने बताया कि बोंदवाल परिवार की स्टॉल पर एक से बढक़र एक कलाकृतियां मौजूद हैं। भारत सरकार द्वारा हरियाणा में अभी आधा दर्जन से ज्यादा शिल्पियों को राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा जा चुका है, इनमें चार पुरस्कार अकेले बोंदवाल परिवार के खाते में हैं।
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राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत
शिल्पकार राजेंद्र बोंदवाल ने बताया कि उनके भाई महाबीर प्रसाद के बेटे चंद्रकांत को साल 2004 में सरकार द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया, जबकि 1979 में उनके भाई महाबीर प्रसाद को, 1996 में उनके पिता जयनाराण बोंदवाल तथा 1984 में राजेंद्र बोंदवाल भी राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत हो चुके हैं। वहीं शिल्पी चंद्रकांत को सूरजकुंड मेला प्राधिकरण की ओर से साल 2005 में कलामणि तथा 2009 में कलानिधि पुरस्कार व वन पीस अंडर कट पैरेट बनाने के लिए सम्मानित किया जा चुका है। बकौल राजेंद्र बोंदवाल आज आधुनिकता की दौड़ में कलाकृतियों की डिमांड अकेले भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है।
लकड़ी के फ्रेम पर चिडिय़ा व फूल पत्ती बनाने के लिए मिला सम्मान
सूरजकुंड मेला परिसर में अपनी शिल्प कला का जादू बिखेर रहे प्रसिद्ध शिल्पकार राजेंद्र बोंदवाल वर्ष 2015 में तत्कालीन माननीय राष्ट्रीयपति से शिल्प गुरू अवार्ड प्राप्त कर चुके हैं। उन्हें शिल्प गुरू का अवार्ड एक लकड़ी के फ्रेम पर बेहद बारीक कला में चिडिय़ा व फूल पत्तियां बनाने के लिए प्रदान किया गया था। इसके अलावा बोंदवाल दो वर्ष के लिए नॉर्थ अफ्रीका भी गए। वहां आईटीआई में छात्रों को लकड़ी की कारीगरी दिखाने के लिए सरकार की ओर से भेजा गया था। वर्तमान में शिल्पी राजेंद्र बोंदवाल अपनी कृतियों के माध्यम से पर्यटकों को कला से रूबरू करा रहे हैं।
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