महाराष्ट्र के अहमदनगर के नेवासा कस्बे में लोगों ने सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश की है। इस साल आषाढ़ी एकादशी और बकरीद एक ही दिन हैं। ऐसे में नेवासा कस्बे के मुस्लिम समुदाय ने हिंदू भाईयों की भावनाओं का मान करते हुए आषाढी एकादशी पर कुबार्नी ना देने का फैसला किया है। इस वाकये ने अल्लामा इकबाल की यह पंक्तियां बरबस ही लोगों के जुबान पर ला दी हैं ‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना…’।
बता दें कि त्यौहारों के मद्देनजर नेवासा पुलिस ने शांति समिति की बैठक का आयोजन किया था। बैठक का आयोजन 29 जून को पड़ने वाली आषाढ़ी एकादशी और बकरीद के त्यौहार पर शांति बनाए रखने के उपायों पर चर्चा के लिए बुलाई गई थी। पुलिस ने लोगों से सौहार्द से त्यौहार मनाने की अपील की। इसी बीच कस्बे के मुस्लिम समुदाय के लोगों ने बताया कि हिंदू भाईयों की भावनाओं का सम्मान करते हुए उन्होंने 29 जून को कुबार्नी नहीं देने का फैसला किया है।
मुस्लिम समुदाय के लोगों ने कहा है कि बकरीद के दिन वह सिर्फ नमाज अदा करेंगे और कुबार्नी नहीं देंगे। सांप्रदायिकता के बढ़ते मामलों के बीच यह खबर सुकून देने वाली है। नेवासा निवासी इमरान दारूवाला ने बताया कि मुस्लिम समुदाय ने शांति समिति की बैठक से पहले ही आपस में बात करके ये फैसला ले लिया था ताकि हिंदू भाइयों को परेशानी ना हो। नेवासा में प्रसिद्ध ज्ञानेश्वर माऊली मंदिर है, जिसकी काफी आस्था है। इसी वजह से आषाढ़ी एकादशी पर कुबार्नी नहीं देने का फैसला किया गया।
नेवासा के ही रहने वाले रहमान पिंजारी ने बताया कि मजहब में तीन दिन तक कुबार्नी देने की इजाजत है। यही वजह है कि आषाढ़ एकादशी को देखते हुए अगले दिन यानी 30 जून को कुबार्नी देने का फैसला किया गया है। नेवासा के हिंदू समुदाय ने मुस्लिम समुदाय की इस पहल का स्वागत किया है और इस पर खुशी जताई है। पुलिस अधिकारी ने बताया कि बीते दिनों में नेवासा में कई असामाजिक घटनाएं घटी हैं। ऐसे में दोनों समुदाय आगे आए हैं और किसी भी तरह के विवाद से बचने का फैसला किया है।