प्रवर्तन निदेशालय द्वारा इंदौर में 110 करोड़ के बैंक घोटाले के मामले में भू माफिया चंपू अजमेरा और कैलाश गर्ग के यहां कार्रवाई की गई। प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने मध्य प्रदेश स्थित एक कंपनी और उसके निदेशकों के खिलाफ 11 परिसरों में तलाशी ली। उन पर यूको बैंक के नेतृत्व वाले कंसोर्टियम से 109.87 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी करने का आरोप था।
ED के अधिकारियों ने कहा कि धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के प्रावधानों के तहत मध्य प्रदेश राज्य के इंदौर, जौरा और मंदसौर और महाराष्ट्र के अलोका में नारायण निर्यात इंडिया प्राइवेट लिमिटेड की समूह कंपनियों और निदेशकों के आवासों पर तलाशी ली गई।
जब्त किया दस्तावेजों और संपत्तियों का विवरण
बयान में कहा गया, “तलाशी के दौरान, विभिन्न आपत्तिजनक दस्तावेज, खातों की किताबें और अचल/चल संपत्तियों का विवरण मिला, जिन्हें जब्त कर लिया गया।” ED ने उक्त कंपनी के खिलाफ दर्ज प्रथम सूचना रिपोर्ट और केंद्रीय जांच ब्यूरो, एसी-IV, व्यापमं, भोपाल द्वारा भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत दायर आरोप पत्र के आधार पर जांच शुरू की।
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बैंक का ऋण चुकाने में रहे असफल
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जांच से पता चला है कि 2011 से 2013 की अवधि के दौरान, उक्त कंपनी को बैंकों के एक संघ, UCO से लेटर ऑफ क्रेडिट (LC) और एक्सपोर्ट पैकिंग क्रेडिट (EPC) के रूप में लगभग 110.50 करोड़ रुपये की ऋण सुविधा का लाभ उठाया। जमीन घोटाले के साथ-साथ अब प्रवर्तन निदेशालय को यह भी पता चला है कि इन भू-माफियाओं ने लोन लेने के नाम पर कई बैंकों से धोखाधड़ी की है।
फर्जी खाते की पुस्तिकाएं कीं थी प्रस्तुत
वहीं, कुछ समय पहले कैलाश गर्ग ने अपने रिश्तेदार सुरेश गर्ग के साथ मिलकर यूको बैंक समेत तीन बैंकों से एग्रीमेंट कर मेसर्स नारायण एक्सपोर्ट इंडियन कंपनी मंदसौर के नाम पर 110 करोड़ रुपए का लोन लिया था। कंपनी ने उस उद्देश्य के लिए धनराशि का उपयोग नहीं किया, जिसके लिए उसे मंजूरी दी गई थी और बैंक ऋण प्राप्त करने के लिए फर्जी खाते की पुस्तिकाएं प्रस्तुत कीं।
बैंक की जानकारी के बिना बेची गई गिरवी संपत्ति
इन लोगों ने उक्त बैंकों के साथ धोखाधड़ी की और बिना किसी सामान का लेन-देन किए राशि को विभिन्न सहयोगी कंपनियों में स्थानांतरित कर दिया। इसके अलावा, यह पाया गया कि बैंकों के पास गिरवी रखी गई संपत्ति का कुछ हिस्सा बैंकों को बिना किसी नोटिस के तीसरे पक्ष को बेच दिया गया था। इसमें कहा गया है कि इस प्रकार, उक्त कंपनी को जानबूझकर अपराध की आय से जुड़ी प्रक्रियाओं और गतिविधियों में शामिल पाया गया।
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