संसद की गृह मामलों से संबंधित स्थाई समिति में शामिल विपक्षी सांसदों ने प्रमुख आपराधिक कानून की जगह पर ला गए तीन विधेयकों पर असहमति नोट सौंपे है। विपक्षी दलों का कहना है प्रस्तावित कानून लगभग एक जैसा ही है।
विपक्षी दलों के मुताबिक यह प्रस्तावित कानून वर्तमान कानून का काफी हद तक एक समान है पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 348 के तहत सभी अधिनियम अंग्रेजी भाषा में होंगे,जो सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट की भी भाषा है,उनके मुताबिक असहमति नोट में लिखा है कि विधेयक की भाषा चाहे जो भी हो विधेयक का नाम मात्र हिंदी में रखना बेहद आपत्तिजनक और असंवैधानिक,गैर हिंदी भाषी लोगों जैसे तमिल,गुजराती का अपमान और संघवाद का विरोध है।
लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी की तरफ से असहमति नोट में कहा गया कि कानून काफी हद तक एक जैसा है,इसमें केवल पुनर्व्यवस्थित किया गया है।
तो वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह कहते हैं कि ऐसा लग रहा है कि समिति के अध्यक्ष रिपोर्ट सौंपने में बहुत जल्दबाजी में थे।
तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन का कहना है कि मौजूदा आपराधिक कानून के करीब 93 फीसदी हिस्से में कोई बदलाव नहीं किया गया है। 22 अध्यायों में से 18 को कॉपी पेस्ट किया गया है,जिसका मतलब है कि इन प्रमुख बदलावों के लिए पहले से मौजूद कानून को आसानी से संशोधित किया जा सकता था।
द्रुमक नेता दया निधि मारन का दावा है कि यह विधेयक केंद्र और राज्यों के बीच के संघीय रिश्ते तथा ढांचे को आगे और बदल देंगे।
समिति में शामिल कम से कम आठ विपक्षी सदस्यों अधीर रंजन चौधरी,रवनीत सिंह बिट्टू,पी चिदंबरम, डेरेक ओ ब्रायन,काकोली घोष,दयानिधि मारन,दिग्विजय सिंह और एनआर एलांगो ने विधेयकों के कई प्रावधानों का विरोध करते हुए अलग-अलग असहमति नोट दिए हैं। तीनों विधेयक भारतीय दंड संहिता दंड प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम के जगह पर लाए गए हैं।