लोकसभा चुनाव के बाद कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। बात छत्तीसगढ़ विधानसभा की जहां, चुनाव में आदिवासी मतदाता अहम भूमिका निभाते हैं। राज्य में किसकी सरकार बनेगी इसका फैसला आरक्षित सीट पर होने वाली हार जीत के बिनाह पर ही तय होता है। यही कारण है कि कांग्रेस जहां आदिवासियों को भरोसा बरकरार रखने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है तो वहीं बीजेपी आदिवासी समाज के महानायक को आदिवासी पुरखौती की सम्मान यात्रा निकाल रही है। विधानसभा की 29 सीटें अनुसूचित जनजाति और 10 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है ऐसे में साल 2018 के विधानसभा चुनाव में नजर डाले तो कांग्रेस ने आदिवासियों के लिए 29 में से 24 सीटें जीत हासिल की थी। कांग्रेस के सामने अपना प्रदर्शन दोहराने की चुनौती है। बीजेपी की बात करें तो साल 2003 से 2013 तक बीजेपी को आदिवासी समाज का समर्थन हासिल था लेकिन इस बार चाहे बात कांग्रेस की हो या बीजेपी को हो दोनों को ही अपनी आरक्षित सीट के लिए आदिवासी समाज से जूझना पड़ेगा क्योंकि सर्व आदिवासी समाज यानि एसएएस आरक्षित सीट समेत कम से कम 50 सीट पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। एसएएस के नेता अरविंद नेताम ने ऐलान किया है कि समाज सभी 29 सीट के साथ-साथ 29 सामान्य सीट पर चुनाव लडेंगी। और अगर एसएएस मैदान में उतरती है तो आरक्षित सीट पर समीकरण बदल सकता है। क्योंकि ज्यादातर आदिवासी सीट पर जीत का अंतर दस हजार से कम था और यही कारण है कि पिछले साढे चार सालों से सीएम भूपेश बघेल सरकार आदिवासियों का भरोसा बरकरार रखने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। एक तरफ जहां आदिवासी संस्कृति के प्रचार प्रसार के लिए अभियान चलाया जा रहा है तो वहीं रानी दुर्गावती की प्रतिमाएं स्थापित कर रही है। रानी दुर्गावती को आदिवासी समाज कई दशकों से देवी के तौर पर पूजता है। खबरें ऐसी भी है कि सर्व आदिवासी समाज नेता अरविंद नेताम भी चुनाव लड़ सकते हैं हालांकि इस मुद्दे पर उनके समाज में अभी मतभेद चल रहा है लेकिन उन्होंने कहा कि समाज चुनाव लड़ेगा या नहीं वह उनका मामला है। लेकिन कांग्रेस इसके लिए तैयार है। इसलिए कांग्रेस पार्टी अपना पुराना प्रदर्शन दोहराने की पूरी कोशिश में है। कांग्रेस पार्टी ने ये दावा भी किया है एसटी आरक्षित सीट पर जीत हासिल करेगी।
आरक्षित सीटों से होता है सत्ता का फैसला–
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