शंकर जालान
कोलकाता, 7 दिसंबर। तटीय क्षेत्रों में लगातार और असामयिक चक्रवाती तूफानों के प्रभाव को कम करने का हुनर विकसित कर पश्चिम बंगाल एक बार फिर सुर्खियों में है। राज्य के सुंदरवन (Sunderban) में व्यवस्थित और वैज्ञानिक तरीके से मैंग्रोव पौधरोपण को राष्ट्रीय मॉडल के रूप में स्वीकार किया गया है। छह तटीय राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, ओडिशा, तमिलनाडु और केरल ने इस मॉडल को अपनाने का फैसला किया है। ये राज्य चक्रवाती तूफानों का असर कम करने के लिए समुद्र तट पर व्यापक और व्यवस्थित तरीके से मैंग्रोव पौधे लगाएंगे।
इन राज्यों ने मैंग्रोव बीज की नौ किस्मों को खरीदने के लिए पश्चिम बंगाल वन विभाग से संपर्क किया। बंगाल के विशेषज्ञों की एक टीम ने इन छह तटीय राज्यों का दौरा किया और अपने समकक्षों को मैंग्रोव पौधों के रोपण, पोषण और रखरखाव को लेकर प्रशिक्षित किया।
बीती जुलाई में सुंदरवन (Sunderban) मॉडल को केंद्र सरकार ने मिष्टी नामक 200 करोड़ रुपए की परियोजना को राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार किया। साथ ही मिष्टी परियोजना को राष्ट्रीय मॉडल में भी दोहराया जाएगा। इसके तहत महिला प्रधान स्वयं-सहायता समूहों (एसएचजी) को पौधरोपण और समुद्र तट के किनारे मैंग्रोव के रखरखाव का कार्य सौंपा जाएगा। बंगाल के दक्षिण चौबीस परगना और उत्तर चौबीस परगना जिलों में फैले सुंदरवन क्षेत्र में अपनाई गई यह परियोजना महिला सशक्तिकरण का एक उदाहरण भी है।
यद्यपि ममता सरकार ने सुंदरवन (Sunderban) मॉडल को राष्ट्रीय स्तर पर अपनाए जाने का श्रेय लिया है, लेकिन लाभार्थी इसका वास्तविक श्रेय पर्यावरण कार्यकर्ताओं के एक समूह को देते हैं। नेचर एनवायरनमेंट एंड वाइल्डलाइफ सोसाइटी के तत्वावधान में संरक्षणवादियों ने चक्रवातों के विनाश से स्थायी और ठोस सुरक्षा प्राप्त करने के लिए 2007 में एक मिशन शुरू किया। प्रोजेक्ट ग्रीन वॉरियर्स के बैनर तले शुरू की गई इस पहल में दक्षिण चौबीस परगना के सुंदरवन क्षेत्र के तीन गांवों-दुलकी-सोनगांव, अमलामेठी और मथुराखंड की महिलाएं शामिल थीं। 150 ग्रामीण महिलाओं को शामिल करते हुए प्रोजेक्ट ग्रीन वॉरियर्स शुरू होने के बाद चक्रवाती तूफानों के खिलाफ दीर्घकालिक प्रतिरोध उपकरण के रूप में व्यवस्थित तरीके से मैंग्रोव पौधरोपण कारगर साबित हुआ।
सोसाइटी के स्वयंसेवकों ने 150 महिलाओं तथा स्थानीय लोगों को मैंग्रोव इलाकों में मवेशी चराने या मछली पकड़ने का जाल खींचने जैसे कदमों से बचने के लिए जागरूकता अभियान शुरू। इस अभियान के बाद 2018 और 2019 के बीच मैंग्रोव पौधे खूब बढ़े। इस परियोजना का सकारात्मक प्रभाव मई 2019 में चक्रवात आइला के दौरान महसूस किया गया। इस परियोजना के तहत जहां भी मैंग्रोव पौधे लगाए गए थे, वहां चक्रवात का असर कम पड़ा।
सुंदरवन (Sunderban) क्षेत्रों में 14 सामुदायिक विकास खंडों के 183 गांवों में फैली 4,600 हेक्टेयर से अधिक भूमि को बड़े पैमाने पर मैंग्रोव वनीकरण के तहत लाया गया। मनरेगा में भी मैंग्रोव पौधरोपण को शामिल किया गया। विशेषज्ञों के मुताबिक मैंग्रोव पौधे तूफानों के प्रभाव को कम करते हैं। मैंग्रोव की विशेषता स्टिल्ट जड़ें हैं, जो तने की गांठों से विकसित होती हैं और मिट्टी के सब्सट्रेटम में शामिल हो जाती हैं, इससे कमजोर तनों को भी यांत्रिक सहायता मिलती है। इसीलिए मैंग्रोव चक्रवाती तूफानों के प्रभाव को सहन करने की बेहतर स्थिति में हैं और आसानी से उखड़ते नहीं हैं।