आज लगभग हर आदमी तनाव में है। किसी को थोड़ा तनाव है, तो किसी को ज्यादा। जब जरूरत, लालसा का दबाव बढ़ता जाता है, तो तनाव उसी अनुपात में बढ़ता जाता है। बच्चे इस तनाव में हैं कि उन्हें अच्छे मार्क्स लाने हैं। युवाओं का तनाव कुछ दूसरे किस्म का है। प्रेमिका मानेगी या नहीं, नौकरी मिलेगी या नहीं, पढ़ाई के बाद क्या होगा? आदि आदि। स्ट्रेस मैनेजमेंट के तमाम सेंटर्स खुले हैं, लेकिन क्या ये सेंटर्स स्ट्रेस कम कर पाए? हर शहर में तनाव कैसे दूर करें, इसे सिखाने वाले सेमिनार, वर्कशाप और व्याख्यान आयोजित किए जा रहे हैं, लेकिन तनाव कम हुआ क्या? नहीं, बल्कि सुरसा के मुंह की तरह बढ़ता जा रहा है। सच कहें तो जिस तनाव का हम बाहर समाधान खोज रहे हैं, वह हमारे भीतर ही है। हमें सब कुछ पा लेने, अपना बना लेने की लालसा रूपी चिपचिपाहट से बचना होगा, तभी तनाव रूपी मकड़जाल से निकल पाएंगे। जितना है, उससे कई गुना हासिल कर लेने की यह लालसा ही हमारे तनाव का कारण है।
हम अपने बच्चे को सहज रूप से पढ़ने दें, बढ़ने दें, तो तनाव पास में फटकेगा भी नहीं। लेकिन नहीं, हमें शर्मा जी के बेटे से कहीं ज्यादा अपने बेटे के मार्क्स चाहिए। शुक्ला जी के मकान से बड़ा हमारा मकान चाहिए, यही तनाव का कारण है। जितना है, उतने से ही संतोष नहीं है। हम चाहे जितने सेमिनार अटेंड कर लें, वर्कशाप में भाग ले लें, आध्यात्मिक गुरुओं के व्याख्यान सुन लें, समस्या हल होने वाली नहीं है। हमें इस मामले में कबीरदास ही रास्ता दिखा सकते हैं-कर बहियां बल आपनी छोड़ बिरानी आस। हमें अपना ही सहारा है, किसी दूसरे के भरोसे तनाव नहीं कम कर सकते हैं। इसके लिए आपको ईमानदार होना पड़ेगा। अपने प्रति, अपने बच्चे और परिवार के प्रति।
आप जो कर सकते हैं, वही करें। जितना कमा सकते हैं, उतना ही कमाएं। बच्चा जितने मार्क्स ला सकता है, उतने पर ही संतोष करें। और अधिक लाने को अनावश्यक दबाव न डालें। प्रेरित करें, लेकिन परेशान न करें। अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए कठोर न बनें। कठोरता तनाव पैदा करती है, तनाव एकाग्रता को भंग करता है। एकाग्रता भंग होने से लक्ष्यों में भटकाव आता है। और जब परिणाम अपेक्षित नहीं आता, तो पहले से ज्यादा तनाव पैदा होता है। हम तनाव दर तनाव झेलते-झेलते एक दिन अवसाद के गहरे कुएं में जा गिरते हैं। परिणाम कुछ भी हो सकता है।
तनाव से मुक्त होने का सबसे सरल उपाय यही है कि हम अपने भीतर खुशियां तलाशें। जीवन के हर पल को उल्लसित होकर जीना सीखें। जीवन का हर पल बहुमूल्य है। इस बात को समझें और जीवन के प्रत्येक पल को जीवंतता से जियें, तो तनाव कभी पास नहीं फटकेगा। हमारे पास जितना है, उतने में ही संतोष करना सीखना होगा। अधिक हो, इसका प्रयास करें, लेकिन न हो पाए, तो जिद न करें। जिद हमें कहीं का नहीं छोड़ेगी। आखिर जीवन में संतोष भी तो कोई चीज है।
-संजय मग्गू