हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में जून 2022 में लगे एक पुस्तक मेले में जाने का अवसर मिला। यहाँ अन्य तमाम बुक स्टाल के साथ ही एक बुक स्टाल अहमदिया समुदाय के मुसलमानों द्वारा भी लगाया गया था। इस्लाम धर्म के अन्य किसी वर्ग यहां तक कि किसी दूसरे धर्म के लोगों का भी कोई बुक स्टाल यहां नजर नहीं आया। उत्सुकतावश अहमदिया समुदाय के स्टाल पर कुछ समय के लिये रुकना हुआ। यहाँ मेरी मुलाकात जिन लोगों से हुई उनमें जैन चौधरी नामक एक उत्साही व होनहार युवा भी थे जो कि अहमदिया समुदाय की पंजाब शाखा से सम्बद्ध थे।
उनसे हुई संक्षिप्त बातचीत में यही लगा कि यह एक शिक्षित समुदाय है जो कि प्रमुखता से विश्व शांति व सद्भाव की बातें करता है। इस समुदाय के लोगों की दिलचस्पी किसी दूसरे धर्म, समुदाय अथवा वर्ग के लोगों में कमियां निकलने, उनकी निंदा करने या उन्हें गलत साबित करने में नहीं बल्कि वैश्विक शांति व सद्भाव में ही है। मैंने अपने जीवन में कभी अहमदिया समुदाय के किसी भी समागम में हिस्सा नहीं लिया, न ही इनके द्वारा आयोजित किसी कार्यक्रम में कभी शिरकत करने का कोई मौका मिला।
कुछ दिनों पूर्व 27 मई को चंडीगढ़ में जब अहमदिया समुदाय की पंजाब शाखा ने एक सर्व धर्म समागम का आयोजन किया गया और शिरकत के लिये मुझे भी आमंत्रित किया गया, तब पहली बार इस समुदाय के किसी कार्यक्रम को व्यक्तिगत रूप से देखने सुनने का अवसर मिला।
सर्वधर्म समागम में अहमदिया समुदाय के अतिरिक्त हिन्दू समुदाय की ओर से इस्कॉन मंदिर रोहिणी के प्रमुख, ईसाई समुदाय के पादरी, सिख समुदाय के धर्मगुरु व एसजीपीसी के सदस्य, कई गुरुद्वारे के प्रमुख, ब्रह्माकुमारी मिशन व बुद्धिस्ट समुदाय के अतिरिक्त कई शिक्षाविद भी उपस्थित थे। कार्यक्रम की शुरुआत भारतीय राष्ट्रगान जन गण मन से हुई।
इस पूरे कार्यक्रम के दो ही मुख्य सार थे। एक तो यह कि लगभग सभी धर्म और समुदाय के वक्ताओं ने अहमदिया समुदाय को एक मजलूम (अत्याचार सहने वाले) समुदाय के रूप में चिन्हित किया। और दूसरा यह कि अहमदिया समुदाय के किसी भी वक्ता द्वारा मुस्लिम समुदाय के किसी भी वर्ग के विषय में कोई भी नकारत्मक बात नहीं की गयी, न ही उनकी चर्चा की गयी। केवल विश्व शांति सद्भाव के सन्देश दिए गए। इस विषय पर जब मैंने आयोजक गण से जानना चाहा कि उन्होंने अन्य कई समुदाय के धर्मगुरुओं को तो आमंत्रित किया परन्तु मुस्लिम समुदाय के किसी भी वर्ग के धर्मगुरु को आमंत्रित क्यों नहीं किया? इस पर जवाब मिला कि ऐसा इसीलिए है कि उनका विरोध केवल मुस्लिम समुदाय के लगभग सभी वर्गों द्वारा किया जाता है। यहाँ तक कि मुसलमानों के जो दो वर्ग आपस में भी लड़ते हैं वे भी अहमदिया विरोध के नाम पर एकजुट हो जाते हैं। मैंने भी अन्य लोगों की ही तरह जब भी अहमदिया मुसलमानों के बारे में कभी सुना या पढ़ा तो यही कि पाकिस्तान में इनकी मस्जिदें तोड़ी गयीं या उनमें आग लगाई गयी।
इनके कब्रिस्तानों में कब्रों को तोड़ा गया। किसी अहमदिया मुसलमान की बेरहमी से हत्या की गयी। इत्तेफाक से यह उसी पाकिस्तान में सबसे ज्यादा होता है जहाँ धर्म के नाम का ढोल सबसे अधिक पीटा जाता है। जिस देश की बुनियाद ही धर्म के नाम पर पड़ी, दुर्भाग्यवश वही देश सबसे अधिक अधर्म का भी शिकार है। इस देश में एक बड़ा कट्टरपंथी वर्ग यह तय करता है कि कौन मुसलमान है तो कौन गैर मुस्लिम। कौन जन्नत में जाएगा, कौन जहन्नुम में। किसे स्वयं को मुसलमान कहने का अधिकार है और किसे नहीं। इसी कट्टरपंथी व रूढ़िवादी वर्ग के लोग अहमदिया मुसलमानों की जान व माल के दुश्मन बने हुए हैं। (यह लेखक के निजी विचार हैं।)
-तनवीर जाफरी