जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के सौ पुत्र और दो पुत्रियां थीं। कहा जाता है कि पुत्रियों ब्राह्मी से लिपिविद्या और सुंदरी से अंकविद्या की शुरुआत हुई थी। ऋषभदेव के दो पत्नियां नंदा और सुनंदा थीं। इनके ज्येष्ठ पुत्र का नाम भरत था जो आगे चलकर चक्रवर्ती सम्राट बने और कहा जाता है कि इन्हीं के नाम पर देश का नाम भारत पड़ा। कुछ लोग शकुंतला पुत्र भरत के नाम पर देश का नाम भारत पड़ने की बात मानते हैं। कहा जाता है कि सम्राट भरत के 96 हजार रानियां थीं। एक दिन एक युवक सम्राट भरत के पास आया और बोला कि महाराज मैं जीवन का रहस्य जानना चाहता हूं। आप के 96 हजार रानियां हैं, आप इन्हें संभालते हैं।
फिर भी आप अनासक्त और वासनारहित रहते हैं। ऐसा कैसे? राजा भरत युवक की बात सुनकर मुस्कुराए और बोले, आपकी बात का जवाब जरूर दूंगा, लेकिन उससे पहले मेरा एक काम आपको करना होगा। भरत ने उसके हाथ में एक जलता हुआ दीपक थमाकर बोले। इसे लेकर पूरे राजमहल में घूम आओ। लेकिन शर्त यह है कि इस दीपक का तेल कहीं पर भी गिरना नहीं चाहिए। तुम्हारे साथ ये अंगरक्षक भी जाएंगे। यदि दीपक से तेल छलका तो यह तुरंत गर्दन धड़ से अलग कर देंगे। लौटने पर बताना कि तुमने क्या-क्या देखा।
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युवक ने ऐसा ही किया। लौटकर आया तो भरत ने पूछा कि तुमने क्या-क्या देखा। उस युवक ने जवाब दिया कि पूरे राजमहल को तो मैं देख भी नहीं पाया। मेरा सारा ध्यान अंगरक्षकों की तलवार और दीए पर थी। भरत ने कहा कि बस, यह मैं समझाना चाहता हूं कि जब तुम मौत रूपी तलवार को हमेशा देखते रहोगे, तो भोग विलास में डूबे से हमेशा बचे रहोगे। यही तुम्हारे सवाल का जवाब है।
-अशोक मिश्र
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