क्रोध इंसान को अलोकप्रिय बना देता है। क्रोधी व्यक्तिी की वजह से घर में कलह तो होती ही रहती है, घर के बाहर के लोग भी परेशान होते हैं। बात-बात पर झगड़ा होता है। किसी घर में एक महिला की अपने घर वालों से नहीं पटती थी। उसे बात-बात पर क्रोध आ जाता था। उसकी इस आदत के चलते घर वाले बहुत परेशान थे। वह न खुद चैन से बैठती थी और न ही घरवालों को चैन से बैठने देती थी। किसी ने भले ही कोई अच्छी बात कही हो, वह उसका अकारण विरोध करने लगती थी। नाराज हो जाती। नाराजगी के चलते न घर का कोई काम करती और न खाना-पीना समय पर करती थी। वह दिनोंदिन कमजोर होती जा रही थी, लेकिन आदत को वह बदल नहीं पा रही थी।
वह जब सामान्य रहती थी, तो वह इस बात को महसूस करती थी कि वह क्रोध करके गलत करती है, लेकिन अगर क्रोध आ गया, तो वह सब कुछ भूल जाती थी। एक दिन एक साधु उसके दरवाजे पर भिक्षा मांगने आया। परेशान महिला ने अपनी पीड़ा साधु को बताई, तो उसने अपने झोले से एक शीशी निकालकर देते हुए कहा कि जब तुम्हें क्रोध आए, तो इस शीशी की चार बूंद दवा अपनी जीभ पर रख लेना और कम से कम बीस मिनट तक कुछ नहीं बोलना है।
अगर दवा खाने के बाद कुछ बोली, तो दवा असर नहीं करेगी। सात दिन बीत गए। सातवें दिन फिर वही साधु दरवाजे पर मौजूद था। महिला ने प्रसन्न होकर बताया कि महाराज अब मैं गुस्सा नहीं करती हूं। जब भी क्रोध आता है, आपकी दवा जीभ पर रख लेती हूं। अब परिवार के लोग भी पसंद करने लगे हैं। तब साधु ने बताया कि शीशी में कोई दवा नहीं बल्कि पानी है। क्रोध पर काबू तभी पाया जा सकता है, जब चुप रहा जाए। यह सुनकर महिला ने साधु को धन्यवाद कहा।
-अशोक मिश्र
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