मानव स्वभाव के पारखी थे अरस्तू
अशोक मिश्र
अपने समय काल में अरस्तू की गणना महान दार्शनिकों में होती थी। वह मकदूनिया के सम्राट सिकंदर के गुरु थे। कहा तो यह भी जाता है कि अरस्तू के शिष्य सिकंदर के पिता राजा फिलिप भी थे। अरस्तू हमेशा सादगी से रहना पसंद करते थे। कहा जाता है कि अरस्तू ने करीब चार सौ पुस्तकों की रचना की थी। अरस्तू ने नाटकशास्त्र, भौतिकी, राजनीति शास्त्र, संगीत, तर्कशास्त्र और जीव विज्ञान जैसे विषयों पर पुस्तक की रचना की थी, लेकिन दुनिया में दार्शनिक के ही रूप में प्रसिद्ध हुए। अरस्तू के गुरु प्लेटो थे। प्लेट के गुरु प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात थे जिन्हें राजा के खिलाफ षड्यंत्र रचने के आरोप में मौत की सजा दी गई थी। उन दिनों जब किसी को मौत की सजा दी जाती थी, तो उस व्यक्ति को पीने के लिए जहर का प्याला दे दिया जाता था। यही सुकरात के साथ किया गया था। अरस्तू का मानना था कि किसी व्यक्ति का स्वभाव ही उसे लोकप्रिय और विश्वसनीय बनाता है, संपत्ति नहीं। संपत्ति तो नष्ट हो सकती है, बढ़ सकती है, लेकिन व्यक्ति का मूल स्वभाव कभी बदलता नहीं है। कहा जाता है कि अरस्तू की पत्नी बहुत कर्कशा थी। वह हमेशा अरस्तू से लड़ती रहती थी। एक बार की बात है। अरस्तू कहीं गए हुए थे। बहुत देर हो गई। देर शाम जब वह अपने घर पहुंचे, तो उनकी पत्नी उन्हें भला-बुरा कहने लगी। इस पर अरस्तू चुप ही रहे। वह अपनी पत्नी का स्वभाव जानते थे। उनके चुप रहने से उनकी पत्नी और चिढ़ गई। उसने पानी से भरी बाल्टी उनके सिर पर पटक दिया। इस पर अरस्तू ने हंसते हुए कहा, वाह! क्या क्रम है। गर्जना के बाद बरसात। इतना सुनते ही अरस्तू की पत्नी का गुस्सा ठंडा हो गया और वह हंस पड़ी। अरस्तू को मानव स्वभाव का पारखी माना जाता है।
अशोक मिश्र