जीवन में संतुलन आवश्यक है। जीवन में यदि असंतुलन है, तो जीवन का आनंद नहीं लिया जा सकता है। यह बात निकोलाई गोगोल ने जीवन में प्राप्त अनुभवों से कही थी। निकोलाई गोगोल का जन्म रूस के ही एक प्रांत (अब एक स्वतंत्र देश) यूक्रेन में हुआ था। उनकी मां और पिता दोनों रूस के कुलीन वंश से ताल्लुक रखते थे। गोगोल के पिता कवि और नाटककार थे। गोगोल रूसी साहित्य में एक उपन्यासकार, लघु कथाकार और नाटककार के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनके साहित्य का दुनिया की कई भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है।
उनका जीवन तमाम अनिश्चितताओं से भरा हुआ रहा। उनके साहित्य में हास्य और व्यंग्य का पुट काफी मात्रा में मिलता है। एक बार की बात है। निकोलाई गोगोल ने अपने मित्रों को रात्रि भोज पर आमंत्रित किया। वैसे उन्हें खाना बनाने का बड़ा शौक था। वे भोजन बनाने के दौरान कई तरह के प्रयोग करते रहते थे। अपने मित्रों के बीच इसकी चर्चा भी करते रहते थे। रात्रि भोज के लिए आमंत्रित मित्रों से उन्होंने कहा था कि वह एक विशेष डिश उनके लिए बनाएंगे। रात्रिभोज पर आने वाले सभी मित्र बहुत उत्सुकता से उस विशेष डिश को चखने के लिए लालायित थे।
समय आने पर उन्होंने अपनी बनाई हुई विशेष डिश मित्रों के आगे परोसी। मित्रों ने उस विशेष डिश को चखा, तो वह मुंह बनाकर बैठ गए। गोगोल को अचंभा हुआ कि लोग चुप क्यों बैठे हैं। उन्होंने एक चम्मच से उस डिश को चखा। उसमें मसाला इतना डाला गया था कि कोई उसे खा नहीं सकता था। यह देखकर गोगोल हंसने लगे और बोले, आज में यह जान गया हूं कि हर मामले संतुलन बहुत जरूरी है। इतना कहकर उन्होंने एक ठहाका लगाया और चुपचाप दूसरी डिश को खाने लगे।
-अशोक मिश्र