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पश्चाताप करने से मन हो जाता है निर्मल

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धरती से बढ़कर कोई दूसरा क्षमा शील नहीं है। मनुष्य धरती का सीना चीरकर कुआं खोदता है। बदले में धरती उसे पीने के लिए मीठा पानी देती है। किसान हल चलाकर उसके शरीर को क्षत-विक्षत कर देता है, लेकिन धरती किसान के प्रति कोई क्रोध नहीं दर्शाती है। वह उस क्षत-विक्षत शरीर में फेंके गए दाने को अपने में समाहित करके सहेज लेती है। इसके बदले में समय आने पर वह फसल के रूप में किसान को वापस कर देती है। हर मनुष्य को धरती की तरह क्षमाशील और धैर्यवान होना चाहिए। कैसी भी परिस्थितियां हों, धरती कभी विचलित नहीं होती है।

जब यह बात महात्मा बुद्ध ने कही, तो वहां उपस्थिति लोग महात्मा बुद्ध के विचार सुनकर प्रसन्न हो उठे। महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों के साथ एक गांव में लोगों के बीच बैठे हुए उपदेश दे रहे थे। इसी भीड़ में एक क्रोधी व्यक्ति भी बैठा हुआ था। उसे महात्मा बुद्ध की बातें पसंद नहीं आ रही थी। उसने उठकर कहा कि तुम झूठ बोलते हो। तुम्हारी बातें कतई सच नहीं होती है। यह सुनकर भी महात्मा बुद्ध चुप रहे और मुस्कुराते रहे। तब उस क्रोधी व्यक्ति ने कहा कि तुम पाखंड़ी हो और दुनिया भर में पाखंड फैलाते हो। इस पर भी महात्मा बुद्ध चुप रहे। वह आदमी क्रोध में उठा और वहां से चला गया। दूसरे दिन जब उसका क्रोध शांत हुआ, तो उसे अपने किए पर बड़ा पश्चाताप हुआ।

उसने सोचा कि मैंने इतना बड़ा पाप किया है, मुझे उनसे क्षमा मांगनी चाहिए। जब वह कल वाली जगह पर गया, तो पता चला कि महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों के साथ पड़ोस वाले गांव में हैं। वह वहां पहुंचकर बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा और क्षमा मांगी। महात्मा बुद्ध ने पूछा तुम कौन हो भाई? तब उसने सब कुछ बताया। तब बुद्ध ने कहा कि तुम्हें अपनी करनी पर पछतावा है। यह अच्छी बात है। उस घटना को भूल जाओ, और लोगों का कल्याण करो। भविष्य में क्रोध मत करना। इसके बाद वह चला गया।

-अशोक मिश्र

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