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चीन की गिरफ्त में फंसे देश छटपटा सकते हैं, मुक्त नहीं हो सकते

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दक्षिण अमेरिका महाद्वीप का एक देश है वेनेजुएला। सन 2000 से पहले ठीक ठाक अर्थव्यवस्था वाले देश में आज लोग कचरे के ढेर में भोजन तलाशने को मजबूर हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य व्यवस्था चौपट हो चुकी है। अर्थव्यवस्था की हालत इतनी बदतर हो चुकी है कि वह अपने कर्ज पर दिए जाने वाले ब्याज के पैसे भी नहीं जुटा पा रहा है। इसकी हालत के पीछे जानते हैं किसका हाथ है? चीन का। वेनेजुएला की हालत ठीक वैसी है जैसी कुछ दिनों पहले तक बांग्लादेश की थी, साल-डेढ़ साल पहले श्रीलंका की थी। इन दिनों पाकिस्तान की है। नेपाल की है। वेनेजुएला के तत्कालीन राष्ट्रपति ह्यूगो शावेज ने सन 2000 में एशियाई देशों में एक महाशक्ति के रूप में उभरते चीन को पूंजी निवेश के लिए आमंत्रित किया था। चीन ने अरबों डॉलर का निवेश किया। वेनेजुएला को तेल सौदों के लिए भी कर्ज दिया।

नतीजा यह हुआ कि वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था के घोड़े बेलगाम दौड़ने लगे। उधार और निवेश के पैसे से खूब तरक्की होती दिखाई दे रही थी। लेकिन सन 2010 तक आते-आते अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें क्या गिरीं, मानो वेनेजुएला की किस्मत ही फूट गई। वेनेजुएला से चीन को होने वाला निर्मात घट गया। नतीजा यह हुआ कि पूरी की पूरी अर्थव्यवस्था ही चरमरा कर बैठ गई। अब कंगाल वेनेजुएला अपनी तमाम परियोजनाओं को पूरा करने के लिए और ऋण मांग रहा है, लेकिन चीन वेनेजुएला पर दबाव डाल रहा है कि वह पहले लिया गया कर्ज और उसका ब्याज चुकाए। दरअसल, पिछले कुछ वर्षों से चीन की अर्थव्यवस्था खुद संकट के दौर से गुजर रही है। उसकी अर्थव्यवस्था स्थिर होती जा रही है। इसके चलते जहां उसके यहां अतिउत्पादन का संकट पैदा हो रहा है, वहीं चीन को अपनी आर्थिक मंदी से निपटने के लिए घरेलू कंपनियों को कई तरह की सब्सिडी और ऋण देना पड़ रहा है।

इसके लिए उसे मुद्रा चाहिए। ऐसी स्थिति में उसके सामने यही रास्ता बचता है कि उसने जिन देशों को कर्ज दे रखा है, उनसे वसूली करे। चीन की यह बहुत पुरानी पॉलिसी रही है कि वह विकासशील और अविकसित देशों में भारी भरकम पूंजी निवेश के साथ उस देश में उत्पादित वस्तुओं के लिए अपना बाजार खोल देता है। कुछ सालों बाद वह अपने बाजार को संकुचित करने के साथ ऋण बढ़ाता जाता है। जब उस देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर आने को होती है, तो वह पूंजी निवेश के साथ-साथ और ऋण देना बंद कर देता है।

नतीजा यह होता है कि उस देश की तमाम परियोजनाएं धनाभाव में ठप हो जाती हैं। गरीबी, बेकारी और महंगाई बढ़ने के साथ-साथ अर्थव्यवस्था ठप हो जाती है। पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल आदि देशों में चीन यही खेल खेल चुका है। अर्थव्यवस्थाएं ठप होने से जनता में असंतोष पनपता है। लोग दाने-दाने को मोहताज हो जाते हैं। नतीजा यही असंतोष एक दिन उग्र रूप ले लेता है, जैसा कि श्रीलंका और बांग्लादेश में हुआ। यदि हालात नहीं सुधरे, तो वेनेजुएला में भी एक दिन श्रीलंका जैसा होने वाला है।

-संजय मग्गू

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