चुनाव…चुनाव…चुनाव। जहां भी चार आदमी जुटते हैं, वहीं चुनाव पर चर्चा शुरू हो जाती है। आफिसों में, चाय के ठेलों पर, घरों में यानी जहां भी चार लोग जुटे, तो दो ही मुद्दे होते हैं बातचीत के लिए। पहली इन दिनों पड़ रही भीषण गर्मी और बिजली कट। दूसरी किस पार्टी की लहर है, किसकी नहीं। कहां से कौन प्रत्याशी जीत रहा है, किसको कौन हरा रहा है। राजनीतिक हलकों में इस बात की चर्चा है कि विभिन्न दलों से बगावत करके किसी खास दल में जाने वालों का मकसद क्या है और उस दल के नेताओं और कार्यकर्ताओं पर इन दलबदलुओं का क्या प्रभाव पड़ेगा। वैसे पिछले चार-पांच महीनों में सबसे ज्यादा कांग्रेस पार्टी की सदस्यता सांसद, पूर्व सांसद, विधायक, पूर्व विधायकों ने ली है। कांग्रेस में 20 पूर्व विधायक, चार पूर्व मंत्री, चार सांसद, एक पूर्व केंद्रीय मंत्री शामिल हैं।
इसके बाद भाजपा का नंबर है। भाजपा में तीन पूर्व मंत्री, पांच पूर्व विधायक, दो पूर्व सांसद और एक मौजूदा विधायक शामिल हुए हैं। दल बदल करने वाले इन नेताओं का मकसद साफ है। इन्हें अपने पुराने संगठन में लोकसभा या विधानसभा का टिकट मिलने की संभावना कतई नजर नहीं आ रही थी, तो इन लोगों ने दूसरे दलों में टिकट की संभावना तलाशने के लिए दलबदल कर लिया। इस बार हरियाणा में भाजपा और कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले या चुनाव का शिड्यूल जारी होने तक दलबदल करने वालों को टिकट देने में कोताही बरती। दोनों दलों ने अपने पुराने नेताओं, सांसदों और विधायकों पर ही भरोसा किया। कुछ के टिकट काटे, तो कुछ नए चेहरों पर दांव खेला।
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लोकसभा के प्रत्याशियों की घोषणा के बाद भाजपा और कांग्रेस ने विधानसभा का टिकट चाहने वाले लोगों के सामने यह साफ कर दिया कि अक्टूबर में होने वाले विधानसभा चुनाव के समय टिकट चाहने वालों का लोकसभा चुनाव के दौरान किया गया प्रयास ही मायने रखेगा। उम्मीदवार को जिताने में जिसकी सबसे ज्यादा भूमिका होगी, वही टिकट का दावेदार होगा। पार्टी भी उन्हीं पर विचार करेगी। भाजपा-कांग्रेस की इस घोषणा का सकारात्मक प्रभाव भी दिखाई दे रहा है। आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट की आशा रखने वाले लोग अपना भरपूर प्रयास करते दिखाई दे रहे हैं।
इस दलबदल का नकारात्मक पहलू यह है कि दल बदलने वालों को पार्टी में महत्व या टिकट मिलने से वे नेता और कार्यकर्ता मायूस हो जाते हैं जिन्होंने वर्षों से पार्टी के प्रति वफादार रहकर काम किया है। जब उनको अपनी वफादारी और मेहनत का फल मिलने वाला होता है, तो दूसरी पार्टी से आकर कोई दूसरा उनका हिस्सा मार जाता है। दलों में असंतोष का कारण भी यही होता है। नतीजा यह होता है कि पुराना नेता या कार्यकर्ता निष्क्रिय हो जाता है या बगावत कर जाता है।
-संजय मग्गू
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