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चुनाव में पराजय मिलने पर ईवीएम को दोष देना उचित नहीं

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महेन्द्र प्रसाद सिंगला
यदि विपक्ष को चुनावों में जीत मिलती है तो उसके अनुसार ईवीएम सही है। यदि उसे हार मिलती है तो ईवीएम गलत है। ईवीएम को लेकर विपक्षी दलों की यह सोच किसी भी प्रकार से सही नहीं कही जा सकती। विपक्ष ने इसे देश में बहुत बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनाया हुआ है। विपक्ष का कहना है कि ईवीएम सही नहीं है। इससे निष्पक्ष चुनाव नहीं हो सकते। विपक्ष की मुख्य आपत्ति चुनावों में ईवीएम की विश्वसनीयता को लेकर है। उसका आरोप है कि ईवीएम से चुनाव सही नहीं होते हैं। चुनावों में ईवीएम को हैक कर लिया जाता है। विपक्षी उम्मीदवार के पक्ष में किया गया वोट सत्तापक्ष के उम्मीदवार के पक्ष में चला जाता है। यदि सच में ऐसा ही है, तो यह बहुत ही गंभीर बात है। इस पर चर्चा-परिचर्चा अवश्य होनी चाहिए ताकि किसी भी पक्ष को कोई भी संशय न रहे। भविष्य में होने वाले किसी भी चुनाव में यह किसी प्रकार का विवाद न रहे।
विपक्ष ने इस मुद्दे को कुछ ज्यादा ही तूल दिया हुआ है। अभी तक ईवीएम को लेकर वाद-विवाद हो रहा है, जो किसी भी प्रकार से थमने का नाम नहीं ले रहा है। जहां एक ओर सत्तापक्ष चुनावों में ईवीएम के प्रयोग का हिमायती है, वहीं दूसरी ओर विपक्ष इसके घोर विरोध में है। उसका कहना है कि देश में चुनाव मतपत्रों से कराने चाहिए, जबकि देश की सबसे बड़ी चुनावी संस्था चुनाव आयोेग ईवीएम को पूरी तरह निर्दोष बता चुका है। आयोग ने विपक्ष को आमंत्रित भी किया है कि वह ईवीएम को गलत साबित करके दिखाएं, लेकिन विपक्ष अभी तक ऐसा कुछ भी सिद्ध कर पाने में असमर्थ रहा है। आयोग का यह भी मानना है कि देश की वर्तमान परिस्थितियों में मतपत्रों से चुनाव कराना न आवश्यक है और न ही औचित्यपूर्ण, लेकिन विपक्ष चुनाव आयोग की बातों से भी सहमत नहीं है। वह चुनाव आयोग को भी आरोपित करते हुए उसे सरकार और सत्ता पक्ष का ही एक अंग और सहयोगी तथा विपक्ष का विरोधी मानता है।
वास्तव में चुनाव किसी भी लोकतंत्र के प्राणतत्त्व होते हैं। लोकतंत्र की जीवंतता के लिए न केवल चुनाव होने चाहिए, बल्कि वे निष्पक्ष भी होने चाहिए। फिर वे चाहे ईवीएम से हों, मतपत्रों से हों या फिर किसी अन्य विधि से। चुनावों के लिए ईवीएम और मतपत्र तो साधन मात्र हैं साध्य नहीं हैं। साध्य तो लोकतंत्र है। एक स्वस्थ लोकतंत्र में विपक्ष द्वारा सत्तापक्ष का विरोध और उस पर उठाए गए सवाल देशहित में जनता की आवाज मानी जाती है जिसमें जनता की पीड़ा की अभिव्यक्ति निहित होती है। लेकिन जिस प्रकार अपनी पराजय पर विपक्ष द्वारा ईवीएम को गलत बताते हुए उसे आरोपित किया जा रहा है, उसमें जनता की पीड़ा नहीं, बल्कि स्वयं विपक्ष की अपनी पराजय से उत्पन्न कुंठा की अभिव्यक्त होती है। जिस प्रकार से चुनाव परिणाम आते रहे हैं और आ रहे हैं, उससे यह स्वयंसिद्ध होता है कि चुनाव परिणाम देश के जनमत की ही अभिव्यक्ति है। ऐसी स्थिति में विपक्ष द्वारा अपनी पराजय में ईवीएम कोे गलत बताना, लोकतंत्र और जनादेश की अवहेलना और अपमान है। इसमें ईवीएम की कहीं कैसी भी, कोई भी भूमिका नहीं है, जिसे किसी भी प्रकार से आपत्तिजनक माना जाए और उससे देश का लोकतंत्र प्रभावित हो सके।
विपक्ष चुनावों में ईवीएम के प्रयोग को लेकर चाहे जितना भी विरोध करे, लेकिन वास्तविकता यह भी है कि समूचा विपक्ष ऐसा नहीं मानता। विपक्ष में ही ऐसे बहुत से नेता हैं, जो चुनावों में ईवीएम के प्रयोग को सही मानते हैं। विपक्ष के प्राय: हर राजनीतिक दल में ऐसे नेता हैं, जो चुनावों में ईवीएम के प्रयोग के पक्ष में हैं और उसका समर्थन करते हैं। इस सबके बावजूद विपक्ष अभी अपनी पराजय पर लगातार ईवीएम को ही गलत मान रहा है। अपनी जीत पर जश्न मनाने तथा अपनी पराजय पर ईवीएम को दोष देने से विपक्ष पर यह कहावत ‘मीठा-मीठा गप, कड़वा-कड़वा थू’ पूरी तरह चरितार्थ हाती है। विपक्ष की यह अनुचित व अनावश्यक बात है, इसे किसी भी तरह से सही नहीं माना जा सकता। यह देशहित में नहीं है। इसके लिए अब तो विपक्ष उपहास का पात्र भी बनता जा रहा है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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