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Editorial: मुफ्त अनाज के बहाने बड़ा चुनावी दांव

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देश रोज़ाना: पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान जातीय आरक्षण से लेकर मुफ्त अनाज तक कई सियासी दांव खेले गए। इस लिहाज से सबसे बड़ा कदम केंद्र सरकार ने उठाया। उसने चुनावी मौसम में मुफ्त अनाज की योजना पांच साल के लिए और बढ़ा दी। यह दांव इसलिए भी बड़ा है क्योंकि अगले साल मई में लोकसभा चुनाव भी होने हैं। इस दांव की कोई बड़ी काट किसी भी विपक्षी दल के पास नहीं है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 80 करोड़ से भी ज्यादा लोगों को मुफ्त अनाज दिया जा रहा है। यह अवधि इस साल 31 दिसंबर तक थी, जिसे पांच साल के लिए बढ़ा दिया गया है।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत गरीबों को मुफ्त अनाज योजना कोरोना महामारी के दौरान आरंभ हुई थी। बाद में इसे कई बार बढ़ाया गया। गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन कर रहे सामान्य परिवारों को प्रति व्यक्ति पांच किलो अनाज हर महीने निशुल्क दिया जाता है। अंत्योदय वर्ग के उपभोक्ताओं को अनाज की यह मात्रा सात किलोग्राम प्रति व्यक्ति है। मसलन प्रत्येक सामान्य परिवार को 25 किलो और अंत्योदय परिवार को 35 किलो अनाज हर महीने दिया जा रहा है। कुल मिलाकर 81.35 करोड़ लोगों को रियायती दरों पर अनाज दिया जा रहा है। इस सुविधा पर 5.91 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। अन्य की इस आपूर्ति के लिए 1.70 लाख करोड़ रुपये का वार्षिक बजट प्रावधान निर्धारित है। सरकार के भंडारों में अनाज की पर्याप्त उपलब्धता के चलते इस योजना की पूर्ति सुचारू रूप से चल रही है।

सरकार के पास प्रत्येक वर्ष की पहली जनवरी को 138 लाख मीट्रिक टन गेहूं और 76 लाख मीट्रिक टन चावल का भंडारण जरूरी होता है। यह भंडारण जरूरी आवश्यकता की तुलना में बहुत अधिक मात्रा में उपलब्ध है। केंद्रीय भंडार गृहों में 15 दिसंबर 2022 तक लगभग 180 लाख मीट्रिक टन गेहूं और 111 मीट्रिक टन चावल मौजूद था। नतीजतन सरकार का आत्मविश्वास बढ़ा और उसने दृढ़ता के साथ गरीबों को मुफ्त में अनाज देने की योजना आरंभ कर दी और अब इसे आने वाले पांच सालों के लिए भी बढ़ा दिया गया है। इस योजना को चुनावी तुरुप का पत्ता माना जा रहा है।

कोरोना महामारी के दौरान जब काम-धंधे पूरी तरह बंद हो गए थे। तब भारत सरकार ने गरीबों को राहत पहुंचाने की दृष्टि से पूर्व से मिल रहे सस्ते अनाज के अतिरिक्ति पांच किलो मुफ्त अनाज देने की व्यवस्था तीन महीने के लिए शुरू की थी। उम्मीद थी कि तीन माह बाद कोरोना का प्रकोप खत्म हो जाएगा। लेकिन यह लंबा खिंचा। इस अवधि को क्रमश: बढ़ाया जाता रहा। योजना का लाभ गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करने वालों के साथ किसान-दिव्यांगों को भी मिला है। केंद्र सरकार की यह बात थोड़ी विसंगतिपूर्ण लगती है कि जब करीब 13 करोड़ लोग गरीबी रेखा के ऊपर चले गए हैं। मसलन आर्थिक रूप से सक्षम हो गए हैं, तो फिर इन्हें मुफ्त अनाज योजना से बाहर क्यों नहीं किया गया?

खाद्य सुरक्षा के तहत फिलहाल करीब 67 फीसदी आबादी मसलन करीब 80 करोड़ लोगों को रियायती दर पर अनाज दिया जा रहा है। इसके दायरे में शहरों में रहने वाले 50 प्रतिशत और गांवों में रहने वाले 75 फीसदी लोग हैं। इस कल्याणकारी योजना का लाभ लोगों तक पहुंचाने के लिए पीडीएस की 1,61,854 दुकानों पर इपीओएस मशीनें लगाई गई हैं, जिससे अनाज की तौल सही हो। सही लोगों को इसका लाभ मिले, इस हेतु राशन कार्डों को आधार नंबर से भी जोड़ा गया है। बावजूद पूरे देश में यह वितरण प्रणाली संदिग्ध बनी हुई है। निशुल्क अनाज योजना के अंतर्गत एक हजार लाख टन से अधिक अनाज प्रतिमाह बांटा जा रहा है। अब तक इस योजना पर प्रधानमंत्री द्वारा दुर्ग में दिए चुनावी भाषण के अनुसार 5.91 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। (यह लेखक के निजी विचार हैं।)

– प्रमोद भार्गव

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