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सरकारी स्कूलों में लड़कियों का दिनोंदिन बढ़ता नामांकन

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जीवन में सफलता प्राप्त करने और कुछ अलग करने के लिए शिक्षा अर्जित करना सबके लिए महत्वपूर्ण है। यह स्त्री-पुरुषों दोनों के लिए समान रूप से जरूरी है, क्योंकि शिक्षा जीवन के कठिन समय में तमाम तरह की चुनौतियों से सामना करने में सहायता करती है। समाज की प्रगति के लिए बालिका शिक्षा अति आवश्यक है। हम जानते हैं कि किसी भी व्यक्ति की प्रथम पाठशाला उसका परिवार और मां प्रथम गुरु होती है।

मां पढ़ी-लिखी होगी, तो वह अपने बच्चों को सही दिशा, संस्कार व उचित शिक्षा का माहौल उपलब्ध करा सकेगी। बदलते हुए समय को ध्यान रखते हुए आज देश के ग्रामीण क्षेत्रों के लोग भी शिक्षा को काफी महत्व दे रहे हैं। यही कारण है कि अब गांव की लड़कियां भी बड़ी संख्या में शिक्षा प्राप्त करने स्कूल जा रही हैं और आत्मनिर्भर बन रही हैं।

बिहार के कई ऐसे सुदूर ग्रामीण क्षेत्र हैं, जहां पिछले कुछ वर्षों में स्कूलों में लड़कियों के नामांकन का प्रतिशत बढ़ा है। मुजफ्फरपुर जिले के पारु प्रखंड स्थित राजकीयकृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, धरफरी की ही बात करें, तो इस स्कूल में लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या अधिक है। स्कूल के छात्र भी इस हकीकत को स्वीकार करते हैं। कक्षा नौ में पढ़ने वाले छात्र आदित्य कुमार कहते हैं कि हमारे स्कूल में लड़कियों की संख्या अधिक तो हैं ही, साथ ही वह स्कूल भी रेगुलर आती हैं।

विद्यालय में पहले से अधिक शिक्षक भी हैं और किताब से लेकर अन्य सुविधाएं भी बढ़ी हैं।’ इसी कक्षा की छात्रा नेहा कुमारी बताती है कि हम लड़कियां रेगुलर क्लास करती हैं। विद्यालय में लड़कियों के खेलने की सुविधाएं उपलब्ध है, जैसे-फुटबॉल, कबड्डी, वॉलीबॉल समेत अन्य खेल की सामगी भी उपलब्ध है। स्कूल में वर्तमान में शिक्षकों की संख्या 11 जबकि दो शिक्षिकाएं हैं।

उधर अभिभावक नवल किशोर बताते हैं कि मेरी बेटी ने गांव में ही रह कर अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की है। वह बारहवीं में पारू प्रखंड की टॉपर रही है। वर्तमान में वह राजधानी पटना के एक प्रतिष्ठित कॉलेज से उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही है। भविष्य में उसकी इच्छा संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास कर आईएएस बनने की है, जिसके लिए वह अभी से तैयारियों में जुट गई है।

पिछले साल उसे अमृत महोत्सव के अवसर पर शास्त्री नृत्य का प्रथम पुरस्कार भी मिला है। वह बताते हैं कि सिर्फ मेरी बेटी ही नहीं, बल्कि गांव की अन्य लड़कियों में भी शिक्षा को लेकर ललक बढ़़ी है। इसका कारण है कि राज्य सरकार बालिका शिक्षा के प्रति काफी गंभीर है।

साइकिल-पोशाक योजना से लेकर कन्या उत्थान योजना एवं स्कॉलरशिप आदि भी स्कूलों में लड़कियों के नामांकन प्रतिशत को बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो रहा है। मैट्रिक-इंटर एवं स्नातक में प्रथम श्रेणी से पास करने पर सरकार लड़कियों को कन्या उत्थान योजना के तहत दस हजार से लेकर 50 हजार तक प्रोत्साहन राशि देती है। इसका भी असर देखा जा सकता है।

हाल के वर्षों में बिहार के शिक्षा विभाग ने सरकारी स्कूलों के शैक्षणिक माहौल में आमूलचूल बदलाव के लिए कई प्रयोग और कठोर नियम भी इसके पीछे प्रमुख कारण बना है। लगातार शिक्षकों की बहाली की जा रही है। आधारभूत ढांचे में सुधार व संसाधनों की कमी को दूर किया जा रहा है। शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक के पदभार संभालने के साथ ही सरकारी स्कूलों व कॉलेज-यूनिवर्सिटी का माहौल ही बदल गया है।

कक्षाओं में छात्र-छात्राओं की उपस्थिति तो बढ़ी ही है, साथ ही शिक्षकों का भी नियमित व समय से स्कूल आना  शुरू हो चुका है। यह कदम बिहार कि शिक्षा व्यवस्था में सुधार का अनुकूल संकेत है। इसके अतिरिक्त सरकारी नौकरियों में महिलाओं को दिया जाने वाला आरक्षण प्रमुख कारण है।  अभी सातवें चरण की बहाली को लेकर बीपीएसी ने परीक्षा आयोजित की थी।

इसमें कक्षा 1-5 के लिए होनेवाली बहाली में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत एवं माध्यमिक, उच्च माध्यमिक व उच्चतर माध्यमिक के लिए 35 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है। महिला एवं बाल विकास परियोजना, पुलिस विभाग से लेकर स्वास्थ्य विभाग तक में महिलाओं के लिए नौकरियों के काफी अवसर पैदा हुए हैं

सपना कुमारी

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