आज सिख पंथ के संस्थापक और पहले गुरु नानकदेव जी की जयंती है। उनका जन्म कार्तिक पूर्णिमा को हुआ था। गुरु नानक देव ने जीवन भर पाखंड, अत्याचार, हिंसा का विरोध किया। उन्होंने महिलाओं को पुरुषों के बराबर समझने की सीख दी। उन्होंने मां, बहन, बेटी, बीवी सहित सभी नारियों का सम्मान करना सिखाया। एक बार की बात है। गुरु नानक देव अपने शिष्य मरदाना के साथ यात्रा पर निकले थे।
वह एक गांव में पहुंचे, तो एक किसान ने उनसे भोजन करने का आग्रह किया। नानक देव जी ने उस किसान का आग्रह स्वीकार कर लिया। किसान ने बड़े प्रेम और आदर के साथ नानक देव और मरदाना को भोजन परोसा। अभी गुरु जी भोजन करते कि तभी उस इलाके के जमींदार का सेवक वहां पहुंचा और गुरु जी से कहा कि आपको जमींदार साहब ने भोजन के लिए आमंत्रित किया है।
जमींदार के सेवक ने बहुत अनुनय विनय की, तो नानक देव जी उसके आग्रह को मान गए। उन्होंने किसान द्वारा परोसी गई एक रोटी उठाई और सेवक के साथ चल दिए। नानक देव जी अपने शिष्य के साथ जमींदार के घर पहुंचे। उसने बढ़िया आसन दिया और कई तरह के पकवान नानक देव और मरदाना के लिए परोसे। इसके बाद उसने गुरु जी से हाथ जोड़कर कहा कि आपको उस गरीब किसान के यहां भोजन करके क्या आनंद मिलता, जो हमारे भोजन में नहीं है।
नानक देव जी ने एक हाथ में किसान की रोटी उठाई और दूसरे हाथ में जमींदार की रोटी। दोनों रोटियों को उन्होंने मसल दिया। किसान वाली रोटी से दूध की धारा निकली और जमींदार वाली रोटी से खून की बूंदें टपकी। नानक देव जी ने कहा कि तुम्हारी रोटी पाप और लोगों का खून चूसकर कमाई गई दौलत से बनाई गई थी। किसान की रोटी उसकी मेहनत की कमाई से बनी थी। यह सुनकर जमींदार नानक देव जी के कदमों गिर गया और आगे से ऐसा न करने का वचन दिया।
-अशोक मिश्र