महिला आरक्षण बिल को लेकर एक बार फिर से राजनीति गरम है। इस बार हनुमान बेनीवाल ने इस मुद्दे को उठाया है। उनका ऐसा कहना है कि पहले भी कई सरकारें महिला आरक्षण बिल ला चुकी हैं, लेकिन कोई भी सरकार इसे लागू नहीं कर पाई है। उन्होंने यह भी कहा कि सांसदों तक बिल की कॉपी ना पहुंचना एक मजाक है।
बेनीवाल ने कहा कि महिलाएं देश की आधी आबादी हैं और उन्हें संसद में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने कहा कि महिलाओं को संसद में 33% आरक्षण मिलने से उन्हें अपने मुद्दों को उठाने का मौका मिलेगा और देश के विकास में उनकी भूमिका और बढ़ेगी।
बेनीवाल ने यह भी कहा कि इस बार भी महिला आरक्षण विधेयक को पारित कराने के लिए वह सभी पार्टियों से अपील करेंगे। उन्होंने कहा कि सभी पार्टियों को इस मुद्दे पर एकजुट होकर आगे आना चाहिए और महिलाओं को संसद में पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने के लिए काम करना चाहिए।
महिला आरक्षण बिल को पहली बार 1996 में तत्कालीन प्रधान मंत्री एचडी देवेगौड़ा की सरकार ने संसद में पेश किया था। लेकिन यह बिल राज्यसभा में पारित नहीं हो पाया था। इसके बाद कई बार यह बिल संसद में पेश किया गया, लेकिन यह कभी भी पारित नहीं हो पाया।
2010 में मनमोहन सिंह की सरकार ने महिला आरक्षण बिल को दोबारा संसद में पेश किया था। इस बार बिल राज्यसभा में पारित हो गया था, लेकिन लोकसभा में यह बिल पारित नहीं हो पाया था।
2014 में मोदी सरकार ने महिला आरक्षण बिल को दोबारा संसद में पेश किया। लेकिन यह बिल लोकसभा में भी पारित नहीं हो पाया था।
महिला आरक्षण बिल के पक्ष में कई तर्क दिए जाते हैं। इन तर्कों में से कुछ इस प्रकार हैं:
महिलाएं देश की आधी आबादी हैं और उन्हें संसद में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिल पा रहा है।
महिलाओं को संसद में 33% आरक्षण मिलने से उन्हें अपने मुद्दों को उठाने का मौका मिलेगा।
महिलाओं को संसद में 33% आरक्षण मिलने से देश के विकास में उनकी भूमिका और बढ़ेगी।
महिलाओं को संसद में 33% आरक्षण मिलने से लैंगिक समानता को बढ़ावा मिलेगा।
महिलाओं को संसद में 33% आरक्षण मिलने से देश की छवि सुधरेगी।
महिला आरक्षण बिल के विरोध में भी कई तर्क दिए जाते हैं। इन तर्कों में से कुछ इस प्रकार हैं:
आरक्षण से मेरिट का नुकसान होता है।
आरक्षण से समाज में विभाजन को बढ़ावा मिलता है।
आरक्षण से महिलाओं की क्षमता पर सवाल उठते हैं।
आरक्षण से महिलाओं के लिए आरक्षित सीटें पुरुषों द्वारा जीती जाएंगी।
आरक्षण से महिलाओं की समस्याओं का समाधान नहीं होगा।
निष्कर्ष
महिला आरक्षण बिल एक जटिल मुद्दा है। इसके पक्ष और विपक्ष में कई तर्क दिए जाते हैं। यह तय करना जनता और राजनीतिक पार्टियों पर निर्भर करता है कि क्या महिला आरक्षण बिल पारित करना चाहिए या नहीं।