हरियाणा के राजनीतिक गगन में चार पार्टियों की चर्चा विशेष रूप से होती रही है। भाजपा कांग्रेस तो राष्ट्रीय पार्टियां हैं, लेकिन जननायक जनता पार्टी यानी जेजेपी और इंडियन लोकदल अर्थात इनेलो क्षेत्रीय दल हैं। इन दलों में इस बार हुए लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा दयनीय स्थिति में जजपा ही रही। सभी दस सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने वाली जजपा को बहुत मुश्किल से एक फीसदी वोट मिल पाया। सभी प्रत्याशी अपनी जमानत जब्त करा बैठे। इससे बेहतर स्थिति में इनेलो रही जिसको लोकसभा चुनाव के दौरान जजपा से ज्यादा वोट मिले। ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छी जनाधार वाली पार्टी जजपा को इस बार ग्रामीण क्षेत्रों से भी वोट नहीं मिले।
राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि पिछली बार विधानसभा चुनाव के दौरान जजपा के राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष दुष्यंत चौटाला ने प्रदेश की जनता से दो वायदे किए थे। पहला यह कि प्रदेश के बुजुर्गों को मिलने वाला बुढ़ापा पेंशन 5100 रुपये कर दिया जाएगा। दूसरा वायदा यह था कि प्रदेश की निजी कंपनियों, कल-कारखानों और संस्थानों में 75 फीसदी स्थानीय युवाओं को नौकरियां प्रदान की जाएंगी। इसके लिए कानून बनाया जाएगा। साल 2019 में जब विधानसभा चुनाव परिणाम आए, तो जजपा को कुल दस सीटें मिलीं और भाजपा को 40 सीटें हासिल हुईं। मजबूरन जजपा को भाजपा के साथ दूसरी बार गठबंधन करके सत्ता में भागीदारी करनी पड़ी। लेकिन वे अपने दोनों वायदों को पूरा नहीं कर पाए। भाजपा ने बुजुर्गों की पेंशन 5100 रुपये नहीं होने दी। 75 प्रतिशत आरक्षण वाला कानून हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया।
इसके बाद जब भाजपा से उसका गठबंधन टूटा, तो उसके विधायकों ने बगावत करनी शुरू कर दी। जजपा के शीर्ष नेतृत्व को बार-बार बागी हो जाने की धमकियां दी जाने लगीं। लोकसभा चुनाव परिणाम ने जजपा की हालत और खराब कर दी। प्रदेश के किसान जितने नाराज भाजपा से हैं, उतने ही जजपा से भी। अब जब तीन-चार महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं, तो जजपा ने एक बार फिर सभी विधानसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने फैसला किया है।
यह फैसला राजनीतिक तौर पर तो सही प्रतीत होता है, लेकिन पिछली बार की तरह ही उसे सफलता मिल पाएगी, इसमें संदेह है। लोकसभा चुनावों में मिली करारी शिकस्त से कार्यकर्ताओं का मनोबल जहां कमजोर हुआ है, वहीं किसानों की नाराजगी जजपा और भाजपा के प्रति कम नहीं हुई है। यदि जजपा को अपना जनाधार बढ़ाना है, तो कुछ ऐसी घोषणाएं और वायदे करने होंगे जिससे प्रदेश का किसान उसकी ओर आकर्षित हो। उसका अविश्वास कम हो। यदि ऐसा करने में जजपा सफल हो जाती है, तो शायद विधानसभा चुनाव में उसे थोड़ी बहुत सफलता मिल सकती है।
-संजय मग्गू