-नम्रता पुरोहित कांडपाल
गुरु पुर्णिमा – गुरुवे नम: सनातन धर्म में ये कहा गया है कि गुरु बिना ज्ञान नहीं, सभी संत-महात्मा, बुद्धिजिवियों का भी यही मानना कि जिसके पास गुरु है, गुरु का ज्ञान है वो इस भवसागर को पार पा ही लेता है। गुरु ही वो सत्ता है जो इस भवसागर से अपने ज्ञानरूपी नैया से पार लगाती है। गुरु की इसी महत्ता को जानने उनकी उपासना और उनकी पूजा के लिए गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाते है। गु शब्द का अर्थ होता है अंधकार, अज्ञान और रु शब्द का अर्थ होता है दूर करना उसे मिटाना यानी जो अज्ञान रूपी अंधकार को हमारे जीवन से मिटा दें वहीं सच्चा गुरु होता है। आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा मनायी जाती है। इसी तिथि को महर्षि वेद व्यास का जन्मदिन भी मनाया जाता है। सबसे पहले मनुष्य जाति को वेदों की शिक्षा महर्षि वेदव्यास ने ही दी थी उन्होंने महाभारत, ब्रह्मसूत्र मीमांसा के अलावा 18 पुराणों की रचना की। इसलिए गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। मौसम विज्ञान में भी इस तिथि को विशेष माना जाता है क्योंकि इस दिन वायु परीक्षण कर आने वाली फसलों का अनुमान लगाया जाता है। इसी दिन से मौसम यानी ऋतु परिवर्तन हो जाता है, ग्रीष्म ऋतु की समाप्ति होती है और वर्षा ऋतु का आरम्भ हो जाता है
गुरु पूर्णिमा पर लकड़ी की चौकी बिछाकर उस पर पीला कपड़ा बिछाकर महर्षि वेद व्यास का फोटो, तस्वीर या मूर्ति रखें इसी के साथ अपने गुरु की कोई फोटो या तस्वीर रख कर पीले या सफेद पूष्प, चंदन अक्षत से पूजा करें, पीली मिठाई का भोग लगाए या कोई पीला फल जैसे आम या केला अर्पित करें। अगर सम्भव हो तो अपने गुरु के पास जाकर उनकी पूजा-अर्चना कर उनके चरणों को स्वच्छ जल से धोकर वस्त्र से साफ करें फिर अपने दोनों हाथों से गुरु के दोनों पैरों के अंगुठो को दबाकर प्रणाम करें, उन्हें पीले वस्त्र, पीली मिठाई और यथा शक्ति दक्षिणा अवश्य दें और साष्टांग प्रणाम कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें, गुरु से प्रार्थना करें की वो आपका दायित्व स्वीकार करें। क्योंकि बिना गुरु कृपा के इस सृष्टि कुछ भी सम्भव नहीं है, गुरु हमारे सभी अवगुणों को लेकर हमें सद्ज्ञान देता है, हमें गुणों से भर देता है। गुरु वो कल्प वृक्ष है जो हमारी सभी इच्छाओं को पूरा करता है। गुरु के सानिध्य से ही आध्यात्मिक उन्नति सम्भव हो पाती है।
गुरु ही है जो हमें ईश्वर तक पहुंचाते है। अगर किसी के पास गरु नहीं तो वे भगवान शिव की पूजा-उपासना करें क्योंकि शिव को आदिगुरु माना गया है। भगवान शिव के अलावा भगवान श्री कृष्ण को भी गुरु स्वरूप मानकर पूजा-उपासना की जाती है। सनातन धर्म में आदि गुरु शंकराचार्य, श्री रामानुजाचार्य को जगत गुरु का स्थान दिया गया है गुरु पूर्णिमा के दिन इनकी पूजा अर्चना कर आशीर्वाद लिया जाता है, बौद्ध धर्म में महात्मा गौतम बुद्ध की उपासना पर बौद्ध अनुयाई उनका आशीर्वाद लेते हैं इसी प्रकार जैन धर्म के उपासक भगवान महावीर जी को गुरु के रूप में पूजा अर्चना कर उनका आशीर्वाद लेते हैं।
इस बार गुरु पूर्णिमा 3 जुलाई 2023 सोमवार को मनाई जाएगी।
आषाढ़ पूर्णिमा तिथि का आरंभ— रविवार 2 जुलाई 2023 रात आठ बजकर 21 मिनट पर होगा।
पूर्णिमा तिथि का समापन– सोमवार 3 जुलाई 2023 शाम पांच बजकर आठ मिनट पर होगा।
उदया तिथि के अनुसार गुरु पूर्णिमा का पर्व 3 जुलाई 2023 वार सोमवार को ही मनाया जाएगा
इस दिन ब्रहम योग और इंद्र योग का निर्माण हो रहा है, जिसे ज्योतिष शास्त्र में शुभ माना जाता है।