प्रो. सतीश धवन का नाम अंतरिक्ष विज्ञान की दुनिया में अमिट है। वह एक भारतीय रॉकेट वैज्ञानिक थे। उनका जन्म श्रीनगर में हुआ था। उनकी पढ़ाई लिखाई भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका में हुई थी। राकेट विज्ञान में उनकी प्रतिभा बेमिसाल थी। उन्हें भारतीय वैज्ञानिक समुदाय द्वारा भारत में प्रायोगिक द्रव गतिकी अनुसंधान का जनक माना जाता है। उन्होंने 1972 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष के रूप में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के संस्थापक विक्रम साराभाई की जगह ली।
वह अंतरिक्ष आयोग के अध्यक्ष और अंतरिक्ष विभाग में भारत सरकार के सचिव भी थे। बात उस समय की है जब हमारे देश का अंतरिक्ष में यान भेजने का प्रोग्राम विफल हुआ था। वह दिन 10 अगस्त 1979 था। उस दिन सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र यानी श्री हरिकोटा रेंज में प्रेस कांफ्रेंस होने वाली थी। सभी इसरो के चेयरमैन सतीश धवन का इंतजार कर रहे थे। एसएलवी-3 का प्रक्षेपण विफल हो चुका था। एपीजे अब्दुल कलाम जैसे तमाम वैज्ञानिक घबराए हुए थे।
वे डर रहे थे कि प्रेस कांफ्रेंस के दौरान विफलता का कारण जब पत्रकार पूछेंगे, तो वह क्या जवाब देंगे। तभी सतीश धवन आए। पत्रकारों ने पूछा कि प्रक्षेपण विफल होने का कौन जिम्मेदार है? तब धवन ने कहा कि इसके लिए मैं जिम्मेदार हूं क्योंकि अपने वैज्ञानिकों को पूरी सुविधाएं नहीं दे पाया। इसके बाद कलाम आदि वैज्ञानिकों ने 11 महीने की कड़ी मेहनत करके 18 जुलाई 1980 को एसएलवी-3 का सफल प्रक्षेपण किया, तो पूरा देश झूम उठा। इस बार प्रेस कांफ्रेंस में सतीश धवन खुद न आकर प्रोजेक्ट डायरेक्टर एपीजे अब्दुल कलाम को भेजा। विफलता पर खुद और सफलता पर साथियों को आगे करना, ही सच्ची लीडरशिप है।
-अशोक मिश्र