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महात्मा बुद्ध बोले-मैं अमृत की खेती करता हूं

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महात्मा बुद्ध को पहली बार श्रावस्ती लाने का श्रेय अनाथपिंडक को दिया जाता है। अब तक मिले प्रमाण के मुताबिक कौसल प्रदेश के राजकुमार जेत के वन को 18 करोड़ स्वर्ण मुद्राओं से ढककर खरीद लिया था। उस स्थान का नाम रखा जेतवन। वहां पर उसने बौद्ध मठों का निर्माण किया और उसके बाद उसने महात्मा बुद्ध को वहां आने का निमंत्रण दिया। तथागत उसकी बात को मान गए।

इसके बाद तो 24 साल तक वर्षाकाल महात्मा बुद्ध ने वहीं बिताया था। एक बार की बात है। महात्मा बुद्ध भिक्षा मांगने निकले। श्रावस्ती के एक गांव में उन्हें देखकर किसान बोला, भंते! मैं खेती करता हूं। उसके बाद मैं भोजन ग्रहण करता हूं। आप भी कुछ कीजिए, उसके बाद भोजन कीजिए।

इस पर तथागत ने कहा कि मैं भी खेती करता हूं। इस पर वह किसान आश्चर्यचकित हो गया। उसने कहा कि मैं आपके पास न तो कोई हल देखता हूं, न बैल है आपके पास। इतना ही नहीं, आपके पास खेती करने के लिए कोई खेत भी नहीं है। तो फिर आप खेती कहां करते हैं। महात्मा बुद्ध ने जवाब दिया, महाराज! मेरे पास श्रद्धा रूपी बीज, तपस्या रूपी वर्षा और प्रजा रूप जोत (खेत) है। पाप भीरूता का दंड है, विचार रूपी रस्सी है।

स्मृति और जागरूकता रूपी हल की फाल और पैनी है। मैं वचन और कर्म से संयत रहता हूं। मैं अपनी इस खेती को बेकार घास से मुक्त रखता हूं। मैं आनंद की फसल काटने तक प्रयत्नशील रहता हूं। अप्रमाद मेरा बैल है जो बाधाएं देखकर भी मुंह पीछे नहीं फेरता है।वह सीधा मुझे शांतिधाम तक ले जाता है। इस प्रकार मैं अमृत की खेती करता हूं। यह सुनकर वह किसान महात्मा बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा और अपनी बात के लिए माफी मांगी।

-अशोक मिश्र

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