महात्मा बुद्ध ने जीवन भर सत्य, अहिंसा और अपरिग्रह का प्रचार-प्रसार किया। उन्होंने लोगों को समझाया कि जरूरत से ज्यादा संग्रह मत करो। यदि जरूरत से ज्यादा है, तो उसे उन लोगों को दे दो, जिनको जरूरत है। इससे समाज में संतुलन बना रहेगा और लोग सुख से अपना जीवन बिता सकेंगे। महात्मा बुद्ध के जीवन काल में ही कपिल (शायद कपिलवस्तु) राष्ट्र के एक राज्य का राजा पांचाल कुसंगति में पड़ गया। कुसंगति में पड़ने के कारण उसे अपने धन-संपत्ति और राज्य को लेकर अहंकार हो गया। नतीजा यह हुआ कि वह अपनी प्रजा पर अत्याचार करने लगा।
वह अपनी प्रजा को परेशान करने और राजकोष को अधिक से अधिक भरने के चक्कर में ज्यादा से ज्यादा टैक्स लगाने लगा। राजा के कर्मचारी टैक्स वसूलने में काफी निर्यदया का परिचय देते थे। रात में चोर, लुटेरे, डाकू प्रजा को लूट ले जाते थे। संयोग से उन दिनों महात्मा बुद्ध उस राज्य में पधारे। बुद्ध का उपदेश सुनने आने वाली जनता ने रो-रोकर अपनी विपदा सुनाई। महात्मा बुद्ध के आने की चर्चा फैली तो राजा पांचाल ने एक दिन उनसे मिलने का मन बनाया। वह अपने मंत्रियों को साथ लेकर एक दिन महात्मा बुद्ध के दर्शन करने और उपदेश सुनने पहुंच गया।
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महात्मा बुद्ध ने राजा को देखते ही कहा कि राजन! जो व्यक्ति अपनी प्रजा का ध्यान नहीं रखता है, जो अपनी प्रजा को दुख देता है, उसका उत्पीड़न करता है और धर्म के अनुसार आचरण नहीं करता है, उसका राज्य बहुत जल्दी ही छिन्न-भिन्न हो जाता है। यह सुनकर राजा बहुत डर गया। उन्होंने उसी समय प्रतिज्ञा की वह अपने पिता की तरह अपनी प्रजा का ध्यान रखेगा। इसके बाद राजा ने प्रजा से लिया जाने वाला टैक्स हटा दिया। जनता को ढेर सारी सुविधाएं प्रदान की और प्रजा का ध्यान रखने लगा।
-अशोक मिश्र
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