दुनिया की किसी भी भाषा में मां के लिए जो भी शब्द हो, वह उस भाषा का सबसे पवित्रतम शब्द है। कहते हैं कि मां की ममता में बड़ी शक्ति होती है। मां और संतान का रिश्ता ही दुनिया में सबसे निस्वार्थ होता है। ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जब मां अपने बच्चे के लिए मौत से टकरा गई और अपने बच्चे को सकुशल बचा लाई। मां की ममता का कोई मोल नहीं है। बच्चा बीमार होता है, तो मां का स्पर्श उसे राहत देता है, वह जल्दी ठीक होने लगता है। इस बात को अब वैज्ञानिक तरीके से भी साबित कर दिया गया है। उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में डॉक्टरों ने कंगारू थेरेपी के माध्यम से 2600 बच्चों की जान बचाई है। बहराइच के महाराजा सुहेलदेव स्वशासी राजकीय मेडिकल कॉलेज ने एक अमेरिकी संस्था की मदद से अगस्त 2021 में प्रीमैच्योर और अंडरवेट बच्चों को बचाने के लिए कंगारू थेरेपी अपनाई और नब्बे प्रतिशत बच्चों का जीवन बचाने और उन्हें स्वस्थ करने में सफलता पाई।
जिस तरह मादा कंगारू अपने बच्चों को अपने पेट में ही प्राकृतिक रूप से बनी थैली में लेकर दिन-रात घूमती रहती है, उसकी जरूरतों का ध्यान रखती है। ठीक उसी प्रकार कंगारू थेरेपी प्रोजेक्ट के प्रमुख और अस्पताल के प्रिंसिपल डॉ. संजय खत्री और उनकी टीम ने एक ऐसी थैली का निर्माण किया है, जिसमें मां अपने अंडरवेट या प्रीमैच्योर बच्चे रखे रहती है। वह कहते हैं कि मां की ममता में किसी मशीन से ज्यादा शक्ति होती है। मां का स्पर्श प्रीमैच्योर बच्चे के लिए दवा का काम करता है। इससे बच्चा स्वस्थ होने लगता है। पिछले तीन साल में डॉ. खत्री और उनकी टीम 2600 बच्चों को जीवनदान दे चुकी है। मेडिकल कालेज के डॉक्टर ऐसी मांओं को कंगारू मेडिकल केयर वार्ड में पहले भर्ती कर लेते हैं जिन्होंने अंडरवेट या प्रीमैच्योर बच्चे को जन्म दिया होता है।
इसके बाद वे दवाओं के साथ-साथ बच्चे को सीने से चिपकाए रखने को कहते हैं। कुछ दिनों बाद मां को अच्छी तरह ट्रेनिंग देकर डिस्चार्ज कर देते हैं। नर्स नवप्रसूता को बच्चे का तापमान, पल्स रेट और अन्य संकेतों को समझने और उसे रिकार्ड करने की ट्रेनिंग देती हैं। महिला के घर चलने जाने के बाद बच्चे के बारे में डॉक्टर और नर्स समय-समय पर रिपोर्ट लेते रहते हैं। यह प्रयोग सचमुच अद्भुत है। वैसे इस बात को सदियों पहले ही समझ लिया गया था कि बच्चा अपने आपको मां की गोद या आंचल में सबसे ज्यादा सुरक्षित महसूस करता है।
आधुनिक चिकित्सा पद्धति का प्रादुर्भाव होने से पहले बच्चे के बीमार पड़ने पर मां अपने बच्चे को अपनी गोद में लिए रखती थीं, रात में अपने सीने से चिपकाकर सुलाती थीं। इससे बच्चा जल्दी स्वस्थ हो जाता था। नौ महीने कोख में रखने वाली मां जितना अच्छी तरह से अपने बच्चे को समझती और जानती है, उतना कोई दूसरा नहीं जान सकता है। जिस बात को आज वैज्ञानिक उपकरणों और प्रयोगों से साबित किया जा रहा है, हजारों साल पहले दुनिया भर की माएं अपने अनुभव से यह बात जानती थीं। इसीलिए मां दुनिया में सबसे महान है।
-संजय मग्गू
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