आखिरकार राहुल गांधी ने वायनाड सीट छोड़ने और अपनी बहन प्रियंका गांधी को वायनाड से लड़ाने का फैसला कर ही लिया। इस बात की संभावना बहुत पहले से थी कि राहुल गांधी वायनाड की सीट छोड़ेंगे। सवाल यह है कि राहुल के वायनाड की सीट छोड़ने से प्रियंका की जीत-हार पर कोई प्रभाव पड़ेगा? राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गांधी के वायनाड छोड़ने से बहुत ज्यादा फर्क वहां की जनता पर नहीं पड़ने वाला है। वायनाड कांग्रेस का गढ़ है। प्रियंका के वहां लड़ने से सिर्फ यह देखना है कि वह अपने भाई राहुल गांधी के जीत के अंतर तक पहुंच पाती हैं या नहीं। साल 2019 में राहुल गांधी ने 4.31 लाख वोटों से चुनाव तब जीता था, जब दक्षिण भारत को छोड़कर पूरे देश में मोदी की लहर चल रही थी। पुलवामा कांड और सर्जिकल स्ट्राइक के चलते पूरे देश में पीएम मोदी के नाम का डंका बज रहा था। चार जून को आए नतीजों में राहुल गांधी ने वायनाड से 3.64 लाख वोटों से जीत दर्ज की है।
प्रियंका गांधी जिस अंदाज में लोगों से बात करती हैं, उनसे घुलमिल जाती हैं, उससे एक संभावना यह भी बन रही है कि प्रियंका के वायनाड से चुनाव जीतने पर वे दक्षिण भारत में कांग्रेस संगठन खड़ा करने में एक अहम भूमिका निभा सकती हैं। इस बार तो कांग्रेस को मलियालियों का भी वोट मिलने की बात कही जा रही है। जब राहुल गांधी वायनाड की जनता का आभार व्यक्त करने के लिए वहां गए थे, कुछ जगहों पर पोस्टर लगाए गए थे कि हमें मत छोड़ना। यदि छोड़ना ही पड़े, तो अपने परिवार का ही कोई सदस्य यहां भेज देना। इस हालात में प्रियंका का वायनाड से जीतना तय माना जा रहा है। हां, अब चुनौतियां राहुल गांधी के सामने हैं।
केरल की बीस सीट के मुकाबले 80 सीटों वाले प्रदेश में कांग्रेस को फिर से जिंदा करना, उसे अपने पैरों पर खड़ा करना, एक बड़ी चुनौती है। जिस तरह इस बार के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने छह और सपा ने 36 सीटों पर विजय हासिल की है, वह राहुल और अखिलेश की समझदारी और तालमेल का नतीजा है। आज भी जब कोई बात होती है, तो राहुल और अखिलेश एक दूसरे की तारीफ करते नजर आते हैं। यह तालमेल यदि भविष्य में बना रहा, तो उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित हो सकता है।
दोनों पार्टी के कार्यकर्ता भी एक दूसरे के साथ सहज महसूस कर रहे हैं। जब कभी ऐसी हालत होती है, तो विपक्षी दल के साथ लड़ना आसान हो जाता है। हां, भविष्य में इस बात का खतरा जरूर है कि यदि भविष्य में कांग्रेस का जनाधार बढ़ता है, तो वह भाजपा और सपा के ही जनाधार में सेंध लगाने से होगा। इस बात से सपा प्रमुख अखिलेश यादव अनभिज्ञ होंगे, ऐसा नहीं माना जा सकता है। जब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकारें थीं, तब बसपा, सपा और भाजपा जैसी पार्टियों ने ही उसके जनाधार में सेंध लगाई थी। इन दलों ने कांग्रेस का वोटबैंक माने जाने वाले दलित, मुस्लिम, ओबीसी जैसे मतदाताओं को अपनी ओर खींच लिया था। कांग्रेस राहुल के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में कितनी खड़ी हो पाती है, यह समय बताएगा।
-संजय मग्गू