महात्मा गांधी ने आजीवन अहिंसा का पालन किया। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि वे अहिंसा के मामले में लियो टॉलस्टॉय से प्रभावित थे, जबकि गौतम बुद्ध की अहिंसा का आधार दूसरा था। महात्मा गांधी ने सत्य को भी अपने पूरे जीवन में अपनाया। परिस्थितियां कैसी भी रही हों, उन्होंने हमेशा सच बोलने पर ही जोर दिया। बांबे (अब मुंबई) में रहने वाले रुस्तमजी सोहराबजी मुदलियार का सारा कारोबार बंबई से संचालित होता था। जिन दिनों की बात है, उन दिनों ब्रिटिश हुकूमत की व्यापारिक राजधानी की तरह थी। रुस्तमजी का कारोबार काफी फैला हुआ था।
कई देशों तक उनका माल जाता था। वे तत्कालीन भारत के बहुत बड़े कारोबारी और सम्मानित व्यक्ति थे। रुस्तमजी गांधी जी के मुवक्किल थे। गांधी जी उनका सारा कानूनी कामकाज देखते थे। रुस्तमजी हर मामले में गांधी जी की सलाह लिया करते थे। लेकिन एक काम वे ऐसा करते थे जिसको उन्होंने महात्मा गांधी से छिपा रखा था। वे कलकत्ता या दूसरी जगहों से आने वाले सामान में चुंगी की चोरी किया करते थे। यह बात उन्होंने गांधी जी से छिपाई हुई थी।
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एक बार अंग्रेज अफसर ने उनकी यह चालाकी पकड़ ली। उसने रुस्तमजी को नोटिस भेजा और कहा कि चुंगी चोरी के अपराध में उनको जेल जाना होगा और जुर्माना भरना पड़ेगा। जेल जाने की बात सुनकर वह डर गए और गांधी जी से डरते-डरते सारी बात सुनाई। यह सुनकर गांधी जी बहुत गुस्सा हुए और बोले, अब आपके बचने का एक ही चारा है कि आप सच बोल दें। इसके बाद यदि जेल जाना पड़े तो भी कोई बात नहीं। रुस्तमजी ने ऐसा ही किया। उनके सच बोलने से अंग्रेज अफसर खुश हो गया और उसने दो गुना जुर्माना लेकर उन्हें छोड़ दिया। अब रुस्तमजी सत्य की महिमा समझ चुके थे। उन्होंने इसके बाद सच ही बोलना शुरू किया।
-अशोक मिश्र
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