संत तुकाराम पंढरपुर के भगवान बिठोबा के परम भक्त थे। उनका जन्म सन 1598 को पुणे के देहू नामक गांव में हुआ था। हालांकि संत तुकाराम की जन्मतिथि को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है। संत तुकाराम के बारे में जो भी जानकारी मिलती है, उसके मुताबिक इनका परिवार देहू गांव में काफी प्रतिष्ठित माना जाता था क्योंकि इनके पिता खेती-किसानी करने के साथ-साथ महाजनी भी करते थे। लेकिन जब संत तुकाराम 18 वर्ष के हुए तो इनके माता-पिता की मृत्यु हो गई। इनका महाजनी या खेती में मन नहीं लगता था, तो धीरे-धीरे सारी संपत्ति खत्म हो गई।
संयोग से उन्हीं दिनों पुणे में भारी अकाल पड़ा और इनकी पहली पत्नी और पुत्र की भूख से मौत हो गई। इनकी दूसरी पत्नी जीजाबाई बहुत कर्कशा थीं। वह संत तुकाराम को कठोर शब्द कहा करती थीं। इनके गांव में पीपल का एक बड़ा सा पेड़ था जिसे गांव वाले बहुत अशुभ मानते थे। यह बात जब तुकाराम को पता चली तो उन्हें बहुत बुरा लगा। वे मानते थे कि इस संसार में जो कुछ भी है, उसका निर्माण प्रकृति यानी ईश्वर ने किया है।
सब शुभ ही है। उन्होंने गांववालों के अंधविश्वास को दूर करने का निश्चय किया। वे उस पेड़ के नीचे रोज जाकर बैठने लगे। कुछ दिनों बाद उन्होंने गांववालों को बुलाया और बोले कि इस प्रकृति में जो कुछ भी है, वह सब शुभ है। प्रकृति की ही बनाई हुई सभी वस्तुएं, जीव-जंतु हैं, तो फिर कोई किसी के लिए अशुभ कैसे हो सकता है। यह अंधविश्वास है। इसके बाद रोज कुछ देर तुकाराम उस पीपल के पेड़ के नीचे बैठने लगे। गांववालों ने देखा कि उनका कुछ नहीं हुआ, तो वे लोग भी उस पेड़ के नीचे से गुजरने लगे। कुछ दिनों बाद उसके नीचे बैठने भी लगे। इस प्रकार संत तुकाराम ने गांववालों का अंधविश्वास दूर कर दिया।
-अशोक मिश्र