इस बात से शायद ही कोई इनकार करे कि समाज के विकास में महिलाओं की बहुत बड़ी भूमिका रही है। उनके इस योगदान का कोई प्रतिदान भी देना संभव नहीं है। समाज को आगे बढ़ाने के लिए संतान को जन्म देने का गुरुतर दायित्व तो प्रकृति ने सौंप ही रखा है, लेकिन उस संतति के पालन-पोषण और शिक्षित करने का जिम्मा भी किसी न किसी रूप में महिलाओं के ही कंधे पर है। इसके बावजूद महिलाओं की जो स्थिति है, उससे हर कोई वाकिफ है। कुछ विचारकों का मानना है कि जब हमारे देश को आजादी मिली, तो पुरुष की तरह स्त्रियां भी आजाद हुईं। वे सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक तौर पर पुरुषों के बराबर स्वतंत्र हुईं, लेकिन पुरुषवादी समाज ने उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता से महरूम ही रखा। समाज की पुरुषवादी मानसिकता ने मर्दों के बराबर कमाने वाली स्त्रियों को भी अपनी कमाई को स्वतंत्र रूप से खर्च करने का अधिकार नहीं दिया। कानूनी रूप से महिला और पुरुष बराबर माने गए। कई साल पहले पिता की संपत्ति में बेटियों को भी अधिकार दिया गया। लेकिन सवाल यह है कि हमारे देश की कितनी बेटियों ने अपने इस अधिकार का उपयोग किया? अगर इस बारे में आंकड़ा जुटाया जाए, तो ऐसी स्त्रियों की संख्या बहुत मामूली निकलेगी।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के आल इंडिया डेट एंड इनवेस्टमेंट सर्वे का विश्लेषण बताता है कि पूरे देश में जमीन पर सिर्फ 5.5 प्रतिशत महिलाओं को ही मालिकाना हक हासिल है। यानी 94.5 प्रतिशत जमीनों के मालिक पुरुष ही हैं। हालांकि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे में यह आंकड़ा 31.7 बताया गया है। अब इनमें से कौन सा आंकड़ा सही है यह बता पाना बहुत मुश्किल है। अगर अर्थशास्त्रीय आधार पर बात की जाए, तो उत्पादन के साधनों पर जिसका अधिकार होता है, उसका ही प्रभुत्व होता है। वह उतना ही स्वतंत्र होता है। हमारे देश में कुछ जनजातियां ऐसी भी हैं जिनमें जब भी स्त्री-पुरुष में बंटवारा होता है, तो हर चीज आधी-आधी बांटी जाती है। माने जमीन, मकान, हल, फावड़ा, खुरपी जैसी सभी चीजें बराबर बंटती हैं। इन जनजातियों में स्त्रियां भी पुरुषों के बराबर स्वतंत्र होती हैं।
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पुरुष का स्त्री पर और स्त्री का पुरुष पर किसी तरह का कोई दबाव काम नहीं करता है। लेकिन बाकी समाज में जमीन-जायदाद या किसी भी तरह की संपत्ति खरीदते समय राय भले ही ली जाती हो और टैक्स आदि बचाने के लिए उनके नाम से खरीदी जाती हो, लेकिन वास्तविक मालिकाना हक पुरुषों के पास ही होता है। यह स्थिति जब तक बनी रहेगी यानी जब तक स्त्री को उत्पादन के साधनों और निजी संपत्ति में बराबर का हक नहीं मिलता है, तब तक पुरुषों की तरह स्वतंत्रता का उपभोग स्त्री के लिए संभव नहीं है। जिस दिन स्त्री पूर्ण स्वतंत्र हो जाएगी, यकीन मानिए परिवार और समाज उस दिन आज से कहीं ज्यादा सुखी और विश्वसनीय हो जाएगा। निर्मल मन से स्त्री को उसका अधिकार तो दीजिए, आपका घर और समाज फुलवारी की तरह महक न जाए, तो कहिएगा।
-संजय मग्गू
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