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देश की जीडीपी तो बढ़े, लेकिन प्रति व्यक्ति आय भी बढ़े

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क्या ऐसा नहीं लगता है कि केंद्र और भाजपा की राज्य सरकारों ने कांग्रेस का चुनावी घोषणा पत्र हाईजैक कर लिया है। जब कांग्रेस ने लोकसभा चुनावों के दौरान अपना घोषणा पत्र जारी किया था, तब उसे रेवड़ी कल्चर को प्रोत्साहित करने वाले बताकर खिल्ली उड़ाई गई थी। तुष्टीकरण करने वाला बताया गया था। लेकिन इस बार जो बजट संसद में पेश किया गया, उसमें से अधिकतर योजनाएं कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र से थोड़े बहुत रद्दोबदल के साथ स्वीकार कर ली गई। सदन में इस बात को कांग्रेस ने उल्लेख भी किया। पिछले दस साल में यह पहला मौका है, जब केंद्र और राज्य सरकारों का राजनीतिक एजेंडा विपक्ष तय कर रहा है। वक्फ बिल लाने की बात उठी, तो कांग्रेस ने इसे जेपीसी यानी संयुक्त संसदीय समिति को भेजने की मांग की थी। केंद्र सरकार ने बिल को सदन में पेश करने के तुरंत बाद ही इसे जेपीसी को भेजने की सिफारिश भी कर दी।

अभी कल ही यानी सोमवार की देर रात ब्रॉडकास्टिंग बिल को केंद्र सरकार ने वापस लिया है। इसका भी विरोध इंडिया गठबंधन ने किया था। सुप्रीमकोर्ट के क्रीमीलेयर फैसले से केंद्र सरकार ने यू टर्न ले लिया है। विपक्ष इसके खिलाफ था। बजट में दो करोड़ युवाओं को इंटर्नशिप देने की घोषणा की गई है। यही बात थोड़े बहुत शाब्दिक हेरफेर के साथ कांग्रेस पहले ही अपने घोषणा पत्र में कर चुकी थी। जिन राज्यों में चुनाव होना है और भाजपा की सरकार है, वहां सभी फसलों को एमएसपी पर खरीदने का ऐलान किया जा चुका है। हरियाणा में पांच सौ रुपये में गैस सिलेंडर देने की घोषणा, एक लाख रुपये से कम आय वाले परिवारों को मुफ्त सरकारी बसों में यात्रा की छूट, किशोरियों को छह महीने तक दूध देने की योजना जैसी तमाम घोषणा रोज सैनी सरकार कर रही है। यह वही भाजपा है जो कर्नाटक, दिल्ली, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में ऐसी ही योजनाओं को रेवड़ी और तुष्टिकरण की नीति बताकर विपक्षी दलों की सरकारों की खिल्ली उड़ाती थी।

लेकिन समय किस तरह बदलता है, आज भाजपा भी वही सब कुछ करने को मजबूर है जिसको करने का ऐलान इंडिया गठबंधन ने किया था। आज देश जिस तरह के हालात से गुजर रहा है, उसमें यह आवश्यक हो गया है कि देश की बहुसंख्य आबादी की क्रयशक्ति बढ़ाई जाए। उसके हाथ में नकदी हो। कांग्रेस के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन ने इस बात को समझ लिया था। संतोष की बात यह है कि अब भाजपा भी इसे समझने को मजबूर हो गई है। धर्म और जाति के मुद्दे पर अब जनता किसी के पक्ष में जाने वाली नहीं है, इस बात को जितनी जल्दी समझ लिया जाए, उतना ही अच्छा है। देश की अर्थव्यवस्था जितना समाजोन्मुख होगी, नकदी का प्रवाह जनता के बीच जितना ज्यादा होगा, नौकरियों के जितने ज्यादा अवसर होंगे, जनता उसी अनुपात में सुखी रहेगी। जीडीपी बढ़ाने के साथ-साथ प्रति व्यक्ति आय भी बढ़नी चाहिए।

-संजय मग्गू

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