इन दिनों पूरे देश में ‘एक पेड़ मां के नाम’अभियान की धूम मची हुई है। हर समाजसेवी, पर्यावरण प्रेमी, स्वयंसेवी संस्थाएं, भाजपा और उसके आनुषांगिक संगठन पौधरोपण की इस मुहिम में शामिल हैं। अखबारों और सोशल मीडिया में मां के नाम पर पौधरोपण की खबरें देखने को मिल रही हैं। हरियाणा में भी इस मुहिम को लेकर कम जोशोखरोश नहीं है। प्रदेश के सभी जिलों में पौधरोपण की खबरें आ रही हैं। यदि इन खबरों पर विश्वास किया जाए, तो ऐसा लगता है कि आने वाले एकाध दशक में पूरा हरियाणा वनाच्छादित हो जाएगा। शायद ऐसा न हो? प्रदेश में हर साल बरसात के मौसम पौधरोपण अभियान चलाया जाता है जिसमें स्कूल-कालेज के छात्र-छात्राएं, स्वयंसेवी संस्थाएं और सरकारी विभागों के अधिकारी-कर्मचारी भाग लेते हैं। आज ही फरीदाबाद में पांच हजार पौधे रोपने की खबरें मीडिया में हैं।
सच तो यह है कि प्रदेश में हर साल लाखों पौधों को रोपने की खबरें तो आती हैं, लेकिन रोपे गए पौधों में से कितने छह महीने, साल भर बाद सुरक्षित रहे, कितने पौधे पेड़ बन पाए, इसकी जानकारी कभी नहीं दी जाती है। मीडिया की सुर्खियों में रहने वाले लोग पौध रोपने के साथ ही अपनी जिम्मेदारी खत्म मान लेते हैं। नतीजा यह होता है कि सत्तर से अस्सी फीसदी पौधों को गाय, भैंस या बकरियां खा जाती हैं। बाकी देखभाल के अभाव में सूख जाते हैं। सच यही है कि सरकारी दावों के विपरीत प्रदेश में वन क्षेत्र और हरित क्षेत्र लगातार घटता जा रहा है। वन क्षेत्र और वन क्षेत्र से बाहर लगे पेड़ों की कटाई अबाध रूप से जारी है। यही क्यों, हरियाणा के हिस्से में आने वाले अरावली क्षेत्र की बात करें, तो इस अरावली क्षेत्र की गिनती देश के कुछेक सबसे खराब स्थिति वाले वनों में होती है।
बीते कई सालों में यहां अंधाधुंध पेड़ों की कटाई हुई है। जंगलों की स्थिति इतनी खराब है कि यहां तेंदुए और इंसानों के बीच आए दिन संघर्ष की खबर आती रहती है। हरियाणा का वृक्ष आवरण 1,565 वर्ग किमी से घटकर 1,425 वर्ग किमी हो गया। राज्य भर में वृक्षों का आवरण 140 वर्ग किमी कम हो गया है। वृक्ष आवरण वनों से अलग होते हंै। ऐसा क्षेत्र जिसका आकार में एक हेक्टेयर से कम हो और पेड़ लगे होते हैं तथा वन क्षेत्रों के बाहर होते हैं, वृक्ष आवरण कहलाते हैं। वर्ष 2020 में बनाई गई हरियाणा वन नीति के तहत वृक्ष आवरण और वन क्षेत्र में बीस प्रतिशत की वृद्धि का लक्ष्य घोषित किया गया था, लेकिन यह लक्ष्य भी पूरा नहीं हो पाया। एनजीटी और सुप्रीमकोर्ट तक अरावली वन क्षेत्र में हो रही पेड़ों की अवैध कटाई और घटते वन क्षेत्र पर चिंता जाहिर कर चुका है। इसके बावजूद वन क्षेत्र में बढ़ोत्तरी नहीं हुई। ‘एक पेड़ मां के नाम’ बहुत सराहनीय है, लेकिन पौधरोपण के साथ पौध रक्षा का भी संकल्प लेना होगा।
-संजय मग्गू