प्राचीनकाल में किसी गांव में एक पंडित जी रहते थे। वह नियम धर्म के बहुत पक्के थे। किसी के हाथ का छुआ पानी तक नहीं पीते थे। उन्होंने काशी में रहकर कई सालों तक अध्ययन किया था। यही वजह थी कि उनका गांव में ही नहीं, दूर-दूर तक बड़ा नाम था और लोग उनका बहुत आदर करते थे। वह सबके सवालों का जवाब भी दिया करते थे। एक दिन उनके पास एक किसान आया और उसने पूछा कि पंडित जी एक बात बताइए, पाप का गुरु कौन है? यह सवाल सुनकर पंडित जी चकराए। उन्होंने काफी विचार किया, लेकिन इस सवाल का जवाब नहीं दे पाए।
उन्होंने सोचा कि मेरे अध्ययन में कोई कमी रह गई थी। सो, वह फिर काशी पढ़ने चले गए। उन्होंने काशी में तमाम विद्वानों, साधु संतों से इस सवाल का जवाब पूछा, लेकिन कोई उस सवाल का जवाब नहीं दे पाया। पंडित जी काफी दुखी रहने लगे। संयोग से उनकी मुलाकात एक गणिका यानी वेश्या से हो गई। उसने कारण पूछा, तो उन्होंने सवाल दोहरा दिया। यह सुनकर उस गणिका ने कहा कि यह सवाल तो बहुत सरल है। इसके लिए आपको कुछ दिन मेरे पड़ोस में रहना होगा। पंडित जी मान गए। पंडित जी अपना खाना खुद बनाते थे। खाना बनाने में काफी परेशानी होती थी।
एक दिन गणिका ने कहा कि खाना बनाने में आपको बहुत परेशानी होती है, मैं आपका खाना बना दिया करूं? पंडित जी ने कहा, नहीं। तब गणिका ने कहा कि मैं खाना बना दूंगी और पांच स्वर्ण मुद्राएं भी दूंगी। स्वर्ण मुद्राओं की लालच में पंडित जी मान गए, लेकिन कहा कि कोई तुम्हें यहां आता जाता न दिखे। अगले दिन गणिका ने खाना बनाया और थाली परोस दी। जैसे ही पंडित जी खाने को हुए उसने थाली खींच ली। पंडित जी नाराज हुए, तो वह गणिका बोली कि पाप का गुरु लोभ है। आप पांच स्वर्ण मुद्राओं की लालच में मेरे हाथ का बना खाना खाने को तैयार हो गए। अब पंडित जी सब कुछ समझ चुके थे।
-अशोक मिश्र