यह सवाल सदियों से अब तक नहीं सुलझ पाया है कि मृत्यु क्या है? चार्वाक दर्शन को मानने वाले लोग मानते हैं कि विरोधों के विरोध की एक द्वन्द्वात्मक प्रक्रिया है जीवन और उसका क्रम-भंग होना ही मृत्यु है। यह प्रकृति द्वारा निर्धारित सत्य है कि जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु निश्चित है। जड़ हो, चेतन हो सबका क्षरण अनिवार्य है। फिर मृत्यु से भयभीत क्यों होना। शायद चार पांच दशक पहले किसी पाकिस्तानी शायरा ने एक शेर लिखा-पसीना मौत का माथे पे आया आइना लाओ/हम अपनी ज़िन्दगी की आखिरी तस्वीर देखेंगे। इसके जवाब में सुरेंद्र विमल नामक शायर ने लिखा-जो रोज करते थे मरने की दुआ/मौत जब आई पसीना आ गया। तो मौत क्या इतनी बुरी है कि उससे भागा जाए? असल में जो मौत के बारे में जान लेते हैं, उन्हें जीवन जीने का सलीका आ जाता है।
जीवन सांस के निरंतर आने-जाने की एक सरल प्रक्रिया है। कहते हैं कि जब बच्चा जन्म लेता है, तो वह सबसे पहले हवा को फेफड़े में खींचता है। वह गर्भ से फेफड़े में हवा भरकर नहीं पैदा होता है। बच्चा जैसे ही पहली बार फेफड़े में हवा भरता है, उसी पल से उसका जीवन शुरू हो जाता है। उसी क्षण से उसकी मौत भी निश्चित हो जाती है। विज्ञान ने इस बात को प्रमाणित कर दिया है कि हमारे शरीर में प्रति क्षण लाखों न्यूरॉन्स पैदा होते हैं, दूसरी तरफ लाखों न्यूरॉन्स मर जाते हैं यानी जीवन और मृत्यु की प्रक्रिया हमारे शरीर में निरंतर चलती रहती है। जीवन-मृत्यु की यही द्वंद्वात्मकता जीवन को आगे बढ़ाती है और एक दिन मौत के द्वार पर लाकर खड़ा कर देती है।
कहा जाता है कि जिस क्षण बच्चा पैदा होता है और जिस क्षण व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त होता है, दोनों समय मस्तिष्क में न्यूरॉन्स बराबर होते हैं। जब मृत्यु निश्चित है, तो फिर क्यों न जीवन का आनंदोत्सव मनाया जाए। हर पल खुलकर जिया जाए। इस धरा को हम जितना सुंदर से सुंदर बना सकते हैं, बनाया जाए। फूलों को, तितलियों को, पेड़ों को, पहाड़ों को, नदियों को, नालों को, समुद्र को जी भरकर प्यार किया जाए। हम प्रकृति से जितना प्यार करें, दुलार करेंगे, मृत्यु के भय से उतना ही दूर रहेंगे। हमें बस एक बात का ध्यान रखना है कि हमारा शरीर पदार्थ की ऊर्जा से संचालित है। जिस दिन यह ऊर्जा अपना रूप बदल लेगी यानी एक पदार्थ दूसरे पदार्थ में बदल जाएगा, उसी क्षण हमारी मौत हो जाएगी। बस।
दरअसल, सच कहा जाए तो हमारी अनंत काल तक जीने की लालसा ही मृत्यु से भय का कारण है। हमें यदि कोई विश्वास दिला दे कि हमारा जीवन लाख साल तक रहने वाला है, फिर देखिए, हमें कितनी राहत महसूस होती है। जब हम जान गए हैं कि मृत्यु निश्चित है तो क्यों न महात्मा बुद्ध की बात मान ली जाए। उनका कहना था कि जो बीत चुका है, वह वापस नहीं आएगा। जो भावी है, उस पर अपना अधिकार ही नहीं है। जो वर्तमान है, वही अपने हाथ में है, तो फिर वर्तमान को क्यों नष्ट किया जाए। मौत जब आएगी तब देखा जाएगा, अभी तो कम से कम जी लें।
-संजय मग्गू