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संकट के बिना जीवन का आनंद कहां?

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संकटों के बिना जीवन का असली आनंद नहीं आता। इतिहास में उन्हीं को जगह मिलती है जिन्होंने चुनौतियां स्वीकार करने का साहस दिखाया है। नैतिक बल के सहारे संकटों का मुकाबला किया जा सकता है। अनैतिक लोगों के हाथ लगी सफलता तात्कालिक होती है, अल्पकालिक होती है, नैतिक बल से प्राप्त सफलता स्थायी होती है। ब्रिटिश उपन्यासकार मार्क रदरफोर्ड ने कई उपन्यास लिखे हैं जो आत्मकथात्मक हैं। उन्होंने एक जगह अपने बारे में लिखते हुए बताया है कि बचपन में एक दिन वे समुद्र के किनारे बैठे थे। तभी उन्होंने देखा कि समुद्र में कुछ दूरी पर एक जहाज लंगर डाले खड़ा है। उत्साही रदरफोर्ड का मन उस जहाज तक जाने के लिए मचल उठा।

वह अच्छे तैराक भी थे। काफी देर तक जब वह अपने को जहाज तक जाने से रोक नहीं पाए, तो वह कूद पड़े समुद्र में। वह बड़ी तेजी से जहाज की ओर बढ़े। जहाज तक पहुंचने के बाद उन्होंने उत्साह में जहाज के कई चक्कर लगाए। अब समय आया वापसी का। वापस आते समय उन्हें लगा कि वह तो थक गए हैं। वापस कैसे जाएंगे। तट था भी काफी दूर। यह विचार आते ही उनके तैरने की गति भी धीमी हो गई। जैसे-जैसे निराशा उन पर हावी होने लगी, उनके हाथ पैर शिथिल होने लगे। एक बार तो लगा कि वह डूब ही जाएंगे।

लेकिन फिर उन्होंने सोचा कि डूब जाने से तो बेहतर है कि एक बार प्रयास करके तट तक पहुंचना। यह सोचते ही उन्हें लगा कि उनके शरीर में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ है। वह अब थोड़ा तेज तैरने लगे थे। निराशा का भाव छंटते ही वह तेजी से तट की ओर बढ़े। अंतत: उन्होंने तट पर जाकर ही दम लिया।  इस बीच थक तो वह गए ही थे, लेकिन अंतिम समय में आशा के संचार ने उनकी जान बचा ली थी।

-अशोक मिश्र

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