अब जब बांग्लादेश में हसीना सरकार का पतन हो गया है, तब भी वहां पर आगजनी, पत्थरबाजी और तोड़फोड़ का न रुकना, यह साबित करता है कि छात्रों की भीड़ में कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो हालात को इतना बिगाड़ देना चाहते हैं कि आने वाली कोई भी सरकार वही करे जो वे चाहते हैं। लाख टके का सवाल यह है कि जब आरक्षण के मुद्दे पर हसीना सरकार और आंदोलनकारी एक मत थे, तो हसीना सरकार का पतन क्यों हुआ। सन 2018 में जब आरक्षण खत्म करने की मांग की गई, तो हसीना सरकार ने उनकी मांग मान ली थी। फिर वह कौन लोग थे जिन्होंने हाईकोर्ट में आरक्षण खत्म करने के फैसले को चुनौती दी? हाईकोर्ट के जज कौन थे जिन्होंने आरक्षण को बहाल कर दिया? छात्रों का साथ देती हुई हसीना सरकार सुप्रीमकोर्ट गई और सुप्रीमकोर्ट ने सिर्फ छह प्रतिशत को छोड़कर बाकी सारा आरक्षण खत्म कर दिया। फिर, यह आग क्यों भड़की? जब सरकार और सुप्रीमकोर्ट ने आरक्षण खत्म कर दिया, तो फिर आरक्षण जारी रखने का कोई तुक ही नहीं बनता है।
बस, यहीं पर आकर शंका की सुई अटक जाती है कि छात्र आंदोलन में कुछ ऐसे तत्व घुस गए और उन्होंने पूरे छात्र आंदोलन को हाईजैक कर लिया। छात्रों की वेषभूषा में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और जमात ए इस्लामी कार्यकर्ता शामिल हो गए और उन्होंने पूरा गेम पलट दिया। इसमें पाकिस्तान और चीन का सहयोग मिलने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। शेख हसीना वाजेब ने अपने पिछले कार्यकाल में जिस तरह बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को संभाला, विकास कार्य किए, वह कुछ पड़ोसी देशों की आंखों में खटक रहा था।
बांग्लादेश के भीतर भी लोग इस बात को पचा नहीं पा रहे थे कि वह चीन और पाकिस्तान के मुकाबले भारत को ज्यादा प्राथमिकता दें। पिछले दो महीनों में जब वह पंद्रह दिन के अंतराल में दो बार भारत आईं, तब बांग्लादेश में ही उनका विरोध किया गया। उससे पहले वह चीन की यात्रा पर भी गई थीं और यात्रा को अधूरा छोड़कर वह वापस आ गईं। यात्रा से पहले शेख हसीना ने आशा की थी कि चीन उन्हें पांच अरब डालर की मदद करेगा, लेकिन चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सिर्फ दो अरब डॉलर की सहायता का आश्वासन दिया। नतीजा यह हुआ कि वह चीन यात्रा को बीच में ही छोड़कर बांग्लादेश वापस आ गईं।
इसके बाद उन्होंने भारत आकर घोषणा की कि तीस्ता परियोजना को भारत पूरा करेगा। तीस्ता परियोजना वास्तव में भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण था। यदि चीन को तीस्ता परियोजना को पूरा करने का जिम्मा मिलता, तो भारत के लिए एक संकट खड़ा हो जाता। अब जब हसीना सरकार का पतन हो गया है। नई सरकार कैसी होगी, लोकतांत्रिक होगी, इस्लामी कानून को मानने वाली होगी या सेना के दबाव में काम करने वाली होगी, यह कह पाना मुश्किल है। लेकिन बांग्लादेश के वर्तमान हालात भारत के लिए सुखद नहीं हैं।
-संजय मग्गू