मंगलवार को हरियाणा के राजनीतिक क्षितिज में जो कुछ देखने को मिला, उससे सरकार पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। हां, इससे भाजपा सरकार की साख पर जरूर थोड़ा बहुत बट्टा लगा। प्रदेश की सैनी सरकार अल्पमत में जरूर आ गई है। मंगलवार की सुबह खबर फ्लैश हुई कि चार निर्दलीय विधायक पूंडरी के रणधीर गोलन, चरखी दादरी के सोमवीर सांगवान, नीलोखेड़ी के धर्मपाल गांदर और बादशाहपुर के राकेश दौलताबाद सैनी सरकार से समर्थन वापस लेंगे। यह खबर आते ही प्रदेश का राजनीतिक तापमान बढ़ गया। लेकिन शाम को जब रोहतक में कांग्रेस नेता और पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के प्रेस कांफ्रेंस में तीन ही निर्दलीय विधायक पहुंचे तो पता चला कि बादशाहपुर के विधायक राकेश दौलताबाद बागी विधायकों में शामिल नहीं हैं।
प्रेस कांफ्रेंस में ही सैनी सरकार से इस्तीफे और प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की गई और इसके बाद मामला खत्म हो गया। सोशल मीडिया और चटपटी खबरों को परोसने वाले कुछ समाचार पत्रों को चटपटा मसाला मिल गया। सरकार से समर्थन वापस लेने वाले और समर्थन वापस लेने को प्रेरित करने वाले दोनों इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि वर्तमान परिस्थितियों में सरकार नहीं गिराई जा सकती है।
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अल्पमत में होते हुए भी सरकार को किसी भी प्रकार का खतरा नहीं है। इसका कारण सिर्फ एक नियम है। अभी हाल ही में मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने फ्लोर टेस्ट पास किया है। ऐसी हालत में छह महीने से पहले उन्हें किसी भी तरह के फ्लोर टेस्ट से गुजरने की जरूरत नहीं है। सितंबर में छह महीने पूरे होंगे, इसके एक ही महीने बाद हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने हैं। यह सभी जानते हैं। फिर समर्थन वापसी का क्या तुक था? दरअसल, कांग्रेस और इन निर्दलीय विधायकों का मानना हो सकता है कि यदि इस समय सरकार को डिस्टर्ब किया गया, तो इसका प्रभाव 25 मई को दस लोकसभा सीटों पर होने वाले मतदान पर पड़ सकता है।
सैनी सरकार के अल्पमत में होने का प्रचार करके कुछ प्रतिशत वोट अपनी ओर खींचा जा सकता है। इसी रणनीति को अंजाम देने के लिए यह सब कुछ किया गया। बुधवार को जजपा नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने कहा कि कांग्रेस सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश करे, जजपा बाहर से उसका समर्थन करेगी। पहली बात तो यह है कि यह बात ही बेतुकी है। दूसरे जजपा के दस में छह विधायक बागी हो रहे हैं। जब से भाजपा-जजपा गठबंधन टूटा है, छह विधायक नाराज हैं। इन नाराज विधायकों में से चार भाजपा के संपर्क में हैं, तो दो कांग्रेस के। ऐसी स्थिति में जजपा सिर्फ चार या छह विधायकों के साथ कांग्रेस के बहुमत कहां से दिला पाएगी?
-संजय मग्गू
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