रूस में इन दिनों भगदड़ मची हुई है। इस भगदड़ में रूस के गरीब और असहाय लोग शामिल नहीं हैं। रूस से भागकर दूसरे देशों में शरण लेने वाले वे लोग हैं जो रूसी अर्थव्यवस्था, सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर अपनी अहम भूमिका अदा करते हैं। यह सब शुरू हुआ रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद। वैसे तो 2014 में भी ऐसी स्थिति तब पैदा हुई थी जब क्रीमिया पर हमला करके रूस ने अपने में मिला लिया था। लेकिन रूस छोड़ने वालों की यह संख्या कुछ हजारों तक ही सीमित रही थी। लेकिन अब लाखों लोग रूस छोड़कर दूसरे देशों में शरण ले चुके हैं। रूस छोड़ने वालों में आईटी एक्सपर्ट्स, डिजाइनर, आर्टिस्ट, एकेडेमिक, वकील, डॉक्टर, पीआर स्पेशलिस्ट्स और भाषा के जानकार भी शामिल हैं।
यह रूसी समाज का वह तबका है जो अमीर माना जाता है। रूस छोड़ने वालों में ज्यादातर की उम्र 50 साल से कम है। रशा नेशनल एकेडमी आॅफ साइंस के अर्थशास्त्री सर्गेई स्मिरनोव का कहना है कि अभी का रुझान तो यही है कि पढ़े-लिखे और अपने काम में दक्ष लोग देश छोड़ने का रास्ता तलाश रहे हैं। वैसे सच तो यह है कि पिछले साल जब युद्ध शुरू हुआ था, तो देश के युवाओं में भगदड़ मच गई थी।
दुनिया भर में इसके वीडियो वायरल हुए थे। समाचार पत्रों में रूस की सीमा पर सैनिकों के साथ दूसरे देश भाग जाने वाले युवाओं की तस्वीरें प्रकाशित हुई थीं। तब देश छोड़कर भाग जाने की कोशिश करने वाले ये वे युवा थे जो सेना में नहीं जाना चाहते थे। कई वीडियो तो ऐसे भी वायरल हुए थे जिसमें वे अपने हाथ या पैर को तोड़ने की कोशिश करते दिखाए गए थे ताकि वे सेना के मामले में अयोग्य घोषित कर दिए जाएं।
हालांकि रूसी प्रशासन ने पलायन की बात तो स्वीकार की है, लेकिन वह संख्या बहुत कम बता रहा है। रूसी रक्षा मंत्रालय ने अभी पिछले महीने जानकारी दी थी कि वर्ष 2022 में रूस छोड़ने वालों की संख्या तेरह लाख थी। वैसे कुछ लोग इस संख्या को बीस लाख के आसपास मानते हैं। फोर्ब्स मैग्जीन ने रूस के विभिन्न विभागों से जो आंकड़े इकट्ठा किए हैं, उसके मुताबिक रूस छोड़ने वालों की संख्या छह से दस लाख के बीच है। रूसी गृहमंत्रालय का कहना है कि युद्ध शुरू होने के बाद विदेश के लिए आवेदन करने वालों की संख्या चालीस फीसदी बढ़ गई है। अमीर और प्रोफेशनल्स के देश छोड़ने से रूसी अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ा है।
एक तो पहले से ही रूसी अर्थव्यवस्था कई तरह की पाबंदियां झेल रही है। अमेरिका और यूरोप सहित कुछ एशियाई देशों के प्रतिबंध लगाने से अर्थव्यवस्था डांवाडोल हो चुकी है। ऐसी स्थिति में जब रूसी समाज के उच्च दक्षता वाले लोग देश छोड़कर दूसरे देशों की शरण ले रहे हों, तो अर्थव्यवस्था पर संकट गहराना लाजिमी है। रूसी कंपनियों और कारखानों को उच्च दक्षता वाले कर्मचारियों की कमी से जूझना पड़ रहा है। रशा नेशनल एकेडमी आॅफ साइंस के अर्थशास्त्री सर्गेई स्मिरनोव का कहना है कि ये रुझान बड़े शहरों को ज्यादा प्रभावित करेगी। मॉस्को, सेंट पीटर्सबर्ग और येकतेरिनबर्ग जैसे शहरों को यह संकट ज्यादा परेशान करेगा।
संजय मग्गू