भ्रम एक ऐसी स्थिति है जिसमें फंसे व्यक्ति को सच्चाई का ज्ञान नहीं रहता है। वह व्यक्ति अपने और संसार के बारे में सोचता कुछ है और वास्तविकता कुछ और ही होती है। ऐसे ही एक सम्राट थे पीटर। वे रूस जैसे विशाल देश के सम्राट थे। वैसे तो सम्राट उदार हृदय, प्रजावत्सल और धर्म निष्ठ थे। वे अपनी प्रजा के कल्याण के लिए भी प्रयासरत रहते थे। प्रजा में उनका बड़ा सम्मान था, लेकिन कई बार वे कुछ बातों को लेकर भ्रम में रहते थे। एक बार उन्होंने अपनी प्रजा के लिए एक विशालकाय चर्च का निर्माण करवाया। वह रोज उस चर्च में प्रार्थना करने जाते थे। सम्राट को चर्च आता देखकर भारी भीड़ जमा होती थी।
एक दिन उन्होंने पादरी से कहा कि हमारे देश की प्रजा बड़ी धार्मिक है। पादरी ने उस समय तो कुछ नहीं कहा, लेकिन शाम को उसने कुछ लोगों को संदेश भिजवा दिया कि कल सम्राट चर्च नहीं आएंगे। दूसरे दिन सम्राट निश्चित समय पर चर्च पहुंचे, तो देखा कि कुछ लोग वहां मौजूद हैं। सम्राट ने पादरी से इसकी वजह पूछी, तो पादरी ने कहा कि यहीं की जनता धर्मभीरु नहीं सम्राट भीरु है।
आपने कल जो भीड़ देखी थी, वह आपके कारण थी। कल मैंने संदेश भिजवा दिया था कि आज सम्राट नहीं आएंगे। आपकी वजह से चर्च आने वाले लोग नहीं आए। सच्चे धार्मिक तो कुछ ही लोग हैं जिनको इस बात से फर्क नहीं पड़ता है कि सम्राट आने वाले हैं या नहीं। यह सुनकर सम्राट पीटर आश्चर्यचकित रह गए। वे मानते थे कि उनके देश की प्रजा धार्मिक है। वह प्रभु की आराधना के लिए चर्च आती है। इसके बाद पीटर की आंख खुल गई। कई बातों में उनका भ्रम दूर हो गया।
अशोक मिश्र