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अंग्रेज तो हिंदुस्तान से चले गए, लेकिन अंग्रेजियत छोड़ गए

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आज महानगरों की स्थिति ऐसी हो गयी है कि वहां किसी भी दृष्टिकोण से यह नहीं लगता कि वो भारत का ही हिस्सा है। कई बार तो इंग्लैंड होने का भ्रम होता है। फिर चाहे वो खानपान हो, रहन-सहन हो, बोलचाल हो या पहनावा ही क्यों न हो। सबमें अंग्रेजियत झलकती है। ऐसे में एक ही बात दिमाग में आती है कि अंग्रेज तो गए पर अपनी अंग्रेजियत यहीं छोड़ गए। तेजी से बदलते इस परिवेश में न तो अंग्रेजी के बिना जिया जा सकता है और न हिंदी की उपेक्षा होती देखी जा सकती है। अंग्रेजी बोलना और लिखना-पढ़ना एक मजबूरी सी बनकर रह गई है। आजकल भारतीय समाज में अँग्रेजी भाषा के प्रति एक बढ़ता हुआ रुझान देखा जा रहा है। लोग आशक्ति की हद तक इसके पीछे पागल हैं। इस परिवर्तन के बहुत से फायदे और कुछ नुकसान दोनों तरफ हो सकते हैं। हमें यह बात अच्छी तरह से समझनी होगी। इसलिए हमें इस विषय पर विचार करने की आवश्यकता है ताकि हम इसके सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं को समझ सकें।

वैसे अंग्रेजी भाषा का बढ़ता हुआ रुझान भारतीय समाज के लिए कई तरीके से लाभदायक भी है। पहला फायदा यह है कि अंग्रेजी भाषा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक मान्यता प्राप्त भाषा है। दूसरे देशो में इसके बिना संवाद करना काफी मुश्किल हो सकती है। यह भारतीय युवाओं के लिए विशेष रूप से रोजगार के अवसरों को बढ़ाता है। दुनिया के किसी भी हिस्से में चले जाइए, आपको अंग्रेजी बोलने और समझने वाले मिल जाएंगे। आधुनिक ग्लोबल व्यापार और कॉरपोरेट क्षेत्र में भी अंग्रेजी भाषा का महत्वपूर्ण स्थान है, जिससे हमारे युवाओं को अंतरराष्ट्रीय माध्यमों में संपर्क स्थापित करने में मदद मिलती है।

दूसरा फायदा है अँग्रेजी भाषा के माध्यम से विज्ञान, प्रौद्योगिकी, औद्योगिक विकास और नवाचारों के क्षेत्र में हमारे ज्ञान को अद्यतित रखने की सुविधा। अंग्रेजी भाषा में वैज्ञानिक और तकनीकी साहित्य उपलब्ध होने के कारण हमें काफी हद तक दुनिया को समझने में आसानी होती है। हमें आपदा प्रबंधन, ऊर्जा संरक्षण, जलवायु परिवर्तन, औद्योगिक क्रांति और बाहरी प्रोत्साहन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों के बारे में अधिक ज्ञान प्राप्त होता है। तीसरा फायदा है विभिन्न राष्ट्रीयताओं को समझने की क्षमता का विकास हम में होता है। अँग्रेजी भाषा के जरिए हम विश्व में विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों, विचारधाराओं और व्यवस्थाओं की अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। यह हमारी दृष्टि को विस्तारित करके समग्र विश्व के साथ संवाद स्थापित करने में मदद करता है और वैश्विक भावनाओं को समझने की क्षमता को विकसित करता है। इससे दुनिया को समझना आसान होता है।

हालांकि, इस बढ़ते अंग्रेजी रुझान के बावजूद कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं, जो हमारे समाज के लिए नुकसानदायक साबित हो सकते हैं। पहला एवं सबसे ज्यादा नुकसान इस बात का हो सकता है कि अंग्रेजी का ज्यादा प्रयोग और प्रभाव हमारी मातृभाषा और राष्ट्रीय भाषा का महत्व कम कर सकता है। राष्ट्र भाषा हिंदी दोयम दर्जे की होकर रह गई है।

लोगों के मन में मातृभाषा के प्रति जो गर्व और सम्मान की भावना है, वो कम हो सकती है। इसको देखते हुए ऐसा भी महसूस होता है कि कहीं ऐसा न हो कि धीरे-धीरे हिंदी का महत्व ही खत्म हो जाए। अनुप्रयोगी हो जाए। हमें अपनी संस्कृति, परंपरा और विरासत को समझने और प्रशंसा करने की आवश्यकता है। यह सब कुछ केवल हमारी मातृभाषा के माध्यम से ही सम्भव है। मातृभाषा ही हमारी संवेदनाओं को व्यक्त करने में सक्षम है। दूसरा नुकसान यह है कि अंग्रेजी का बढ़ता हुआ प्रयोग आर्थिक और सामाजिक असमानताओं को बढ़ा सकता है। वे लोग जिनकी मातृभाषा अंग्रेजी नहीं है, उन्हें सामाजिक और आर्थिक माध्यमों में सक्रिय भागीदारी की सीमाएं लग सकती हैं, जिससे उनके विकास और आर्थिक समृद्धि में प्रतिबंध आ सकता है। इसलिए, हमें इस बढ़ते अंग्रेजी रुझान को सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं के साथ समझने की आवश्यकता है। हमें अपनी मातृभाषा और संस्कृति के महत्व को समझना चाहिए, साथ ही विदेशी भाषा को भी अच्छी तरह से स्वीकारना चाहिए। हमें अँग्रेजी के माध्यम से विश्व में अपनी गहरी पहचान बनाने के साथ-साथ अपनी मातृभाषा के प्रति भी सम्मान और प्रेम बनाए रखने की क्षमता विकसित करनी चाहिए।

डॉ. योगिता जोशी

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