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Bhole Baba: जानें कैसे पुलिस की नौकरी छोड़ ‘भोले बाबा’ बने कासगंज के सूरजपाल

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उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक सत्संग के बाद भगदड़ मचने से 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। सत्संग बाबा नारायण हरि उर्फ साकार विश्व हरि ‘भोले बाबा’ (Bhole Baba) की थी। इस घटना में कई लोग घायल भी हो गए हैं। तो चलिए आज आपको सूरजपाल से ‘भोले बाबा’ बनने की पूरी कहानी बताते हैं…

Bhole Baba: 20 साल पहले आध्यात्म को अपनाया

पुलिस के एक सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी ने बताया कि कासगंज के पटियाली थाना क्षेत्र के बहादुर नगर के मूल निवासी करीब 70 वर्षीय ‘भोले बाबा’ (Bhole Baba)  का असली नाम सूरजपाल है।

उन्होंने बताया कि अनुसूचित जाति (एससी) के सूरजपाल ने करीब दो दशक पहले पुलिस की नौकरी छोड़कर आध्यात्म की ओर रुख किया और ‘भोले बाबा’ बनने के बाद उनके भक्तों की संख्या बढ़ने लगी। उनके सत्संग में बड़ी संख्या में लोग जुटते हैं। पटियाली के पुलिस क्षेत्राधिकारी (सीओ) विजय कुमार राना ने एक न्यूज एजेंसी से इस बात की पुष्टि की कि ‘भोले बाबा’ बहादुर नगर के रहने वाले हैं और करीब दो दशक पहले पुलिस की नौकरी छोडकर सत्संग करने लगे।

बाबा की नहीं है कोई संतान

सामान्य जानकारी के आधार पर सीओ ने बताया कि सूरजपाल के तीन भाइयों में एक की मौत हो चुकी है। ‘भोले बाबा’ (Bhole Baba) के रूप में ख्याति पाने वाले बाबा ने यहां बहादुर नगर की अपनी संपत्ति को एक ट्रस्ट बनाकर एक “केयर टेकर” नियुक्त किया है। बाबा की कोई संतान नहीं है और पत्नी को अपने साथ ही लेकर सत्संग में जाते हैं। हाथरस के एक जानकार ने बताया कि बाबा प्रवचन देते हैं और सुरक्षा व्यवस्था के लिए अपने ‘वालंटियर’ रखते हैं, जो उनके सत्संग की व्यवस्था संभालते हैं। प्रवचन करने वाले ‘भोले बाबा’ ने डेढ़ दशक से अधिक समय पहले पुलिस की नौकरी छोड़कर सत्संग शुरू किया था और ‘साकार विश्व हरि भोले बाबा’ बन गए।

सूट-बूट पहनते हैं बाबा

बाबा (Bhole Baba) के बहादुर नगर के आश्रम स्थापित होने के बाद गरीब और वंचित तबके के बीच में उनकी प्रसिद्धि तेजी से बढ़ी और लाखों की संख्या में उनके अनुयायियों बन गए। नारायण हरि की एक खासियत यह है कि वह भगवा वस्त्र नहीं पहनते हैं, बल्कि सफेद सूट और टाई पहनना पसंद करते हैं। उनका दूसरा पसंदीदा परिधान कुर्ता-पायजामा है। अपने प्रवचनों के दौरान वह कहते हैं कि उन्हें जो दान दिया जाता है, उसमें से वे कुछ भी नहीं रखते और उसे अपने भक्तों पर खर्च कर देते हैं।

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