बालिका शिक्षा में निवेश से न केवल समुदाय बल्कि देश और पूरी दुनिया का नक्शा बदल सकता है। इससे बाल विवाह की संभावना कम और स्वस्थ जीवन जीने की संभावना अधिक हो जाती है। वे उच्च आय अर्जित करती हैं। उन निर्णयों में भाग लेती हैं जो उन्हें सबसे अधिक प्रभावित करते हैं। लड़कियों की शिक्षा जहां अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाती है, वहीं असमानता को कम करने में भी महत्वपूर्ण कड़ी साबित होता है। इसके बावजूद भारत में बालिका शिक्षा को लेकर उत्साह नहीं दिखता। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2021 तक भारत की 84.4 प्रतिशत पुरुष आबादी और 71.5 प्रतिशत महिला आबादी साक्षर है। जबकि ग्रामीण भारत में लैंगिक साक्षरता का अंतर बहुत अधिक है। 15 से 49 वर्ष के आयु वर्ग की केवल 66 प्रतिशत महिलाएं ही साक्षर हैं।
दरअसल अब भी हमारे समाज में बालिका शिक्षा को हतोत्साहित करने वाले कई कारक मौजूद हैं। इनमें एक देशभर में लड़कियों के लिए पर्याप्त संख्या में कन्या पाठशाला की अनुपलब्धता भी है। ऐसे विद्यालयों की उचित व्यवस्था न होने के कारण बालिकाएं शिक्षा से वंचित हैं। आज भी ग्रामीण समाज के बहुत से ऐसे अभिभावक हैं, जो उच्च शिक्षा के लिए सह-शैक्षिक संस्थाओं में लड़कियों का दाखिला करवाने के लिए राजी नहीं होते हैं। जागरूकता के अभाव और कई प्रकार की भ्रांतियों के कारण वह 10वीं अथवा 12वीं में लड़कियों को सह-शैक्षिक संस्थानों में पढ़ाने के पक्ष में नहीं होते हैं। ऐसे में कन्या पाठशालाएं बालिका सुरक्षा के साथ-साथ उनमें शैक्षणिक विकास में सहायक साबित होता है।
इसका मतलब यह नहीं है कि लड़कियां किसी अलग दुनिया की प्राणी होती हैं। लेकिन सामान्य विशेषताएं, व्यवहार और जरूरतें अलग-अलग होती हैं। लड़कियों के स्कूल उनकी जरूरतों पर अधिक और प्रभावी ढंग से ध्यान केंद्रित करने में सक्षम होता है। इन स्कूलों में लैंगिक रूढ़िवादिता की संभावना कम होती है। जिससे उनमें नवाचार की प्रवृत्ति अधिक दिखाई देती है।
देहरादून के सर्वश्रेष्ठ बोर्डिंग स्कूलों द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में लड़कियों के साथ अकसर भेदभाव किया जाता है। अत: उन्हें सीखने के लिए एक सुरक्षित स्थान की आवश्यकता होती है। कन्या पाठशालाएं लड़कियों को इस बात की चिंता किए बिना कि उन्हें अन्य छात्रों या शिक्षकों द्वारा परेशान किया जाएगा, अपनी शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने में सहायता प्रदान करता है। सह-शैक्षिक संस्थानों में लड़कों की चर्चा पर एकाधिकार करने की प्रवृत्ति होती है।
समूह कार्य और व्यावहारिक अभ्यासों में अधिक दबंग भूमिकाएं निभाते हैं। लड़कियों पर पूर्वाग्रही लैंगिक भूमिकाओं के अनुरूप दबाव होता है। शिक्षक भी ऐसी सामग्री का उपयोग करते हैं जो लड़कों की व्यस्तता को बरकरार रखने और उनके व्यवहार को नियंत्रित करने की कोशिश करती है। लड़कियों को कम समस्याग्रस्त माना जाता है। लेकिन यह तथ्य ठीक नहीं है। वे तभी अपनी समस्याएं उजागर कर पाती हैं, जब उन्हें उनके अनुकूल परिवेश प्रदान किया जाए। यही कारण है कि दिल्ली जैसे महानगर में भी निजी विद्यालयों के विपरीत अधिकतर सरकारी स्कूलों में पूर्ण रूप से लड़के और लड़कियों की शैक्षणिक गतिविधियां अलग-अलग चलाई जाती हैं।
वहीं दूसरी ओर राजस्थान के जालोर जिले के निकटवर्ती बागरा कस्बे व आसपास के किसी भी गांव में वर्तमान में एक भी सरकारी बालिका विद्यालय नहीं है। कस्बे के ग्रामीण सत्तार खान, दिनेश कुमार, प्रतापाराम सुथार कहते हैं कि बालिकाओं की शिक्षा का स्तर बढ़ाने के लिए राज्य सरकार ने 1953-54 में एक प्राथमिक बालिका विद्यालय खोला था जिसमें बड़ी संख्या में कस्बे सहित आसपास के गांवों की बालिकाओं ने दाखिला लेकर अपनी पढ़ाई जारी रखी।
उसके बाद राज्य सरकार ने सत्र 1972-73 में इस बालिका विद्यालय को उच्च प्राथमिक विद्यालय में उन्नत कर दिया। लेकिन 20 अगस्त 2014 को इस बालिका विद्यालय को बंद कर कस्बे के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में मर्ज कर दिया गया। हालांकि ग्रामीण लंबे समय से मांग कर रहे हैं कि पुन: इस बालिका विद्यालय को खोला जाए ताकि जो अभिभावक बालकों के साथ अपनी बालिकाओं को नहीं पढ़ाना चाहते हैं, वे बालिकाएं भी अपनी पढ़ाई जारी रख अपना भविष्य उज्ज्वल कर सकें।
इस संबंध में वरिष्ठ शारीरिक शिक्षक रूपसिंह राठौड़ बताते हैं, ‘गत वर्ष बजट योजना में एक सिंगल आर्डर से पूरे राज्य में स्थित सभी राजकीय बालिका विद्यालयों को एक साथ 12वीं तक क्रमोन्नत कर दिए गए हैं, ऐसे में अगर यह विद्यालय भी नियमित रूप से संचालित हो रहा होता तो यह विद्यालय भी 12वीं तक क्रमोन्नत हो जाता जिससे यहां नामांकन भी बढ़ जाता।’ कस्बे के सरपंच सत्य प्रकाश राणा कहते हैं, ‘बागरा एक बड़ा कस्बा है। विभिन्न स्कूलों में पढ़ने वाली बालिकाओं की संख्या 600 से भी अधिक है। ग्रामीणों की लंबे समय से इस बालिका विद्यालय को पुन: खोलने की मांग की जा रही है।
इस सिलसिले में पंचायत से प्रस्ताव बनाकर राज्य सरकार को भेजेंगे ताकि बागरा में भी बालिका विद्यालय पुन: खुल सके।’ ब्लॉक शिक्षा अधिकारी आनंद सिंह राठौड़ का कहना है कि, ‘बागरा में पुन: राजकीय बालिका विद्यालय खोलने के लिए निदेशालय बीकानेर व राज्य सरकार को पत्र भेजकर अवगत करवाएंगे ताकि यहां भी बालिका विद्यालय पुन: आरंभ हो सके।’ इस संबंध में कस्बे की एक किशोरी हेमा कहती हैं, ‘यदि आप एक लड़की हैं, तो आप जानती हैं कि सुरक्षित रहने की भावना आवश्यक है।
देवेन्द्रराज सुथार