दुनिया भर के धर्मों में लालच को बुरा बताया गया है। लालची व्यक्ति कभी सुखी नहीं रह सकता है क्योंकि वह हमेशा इसी उधेड़बुन में लगा रहता है कि वह अपनी धन-संपत्ति में कैसे वृद्धि करे। भले ही उसके पास अरबों की संपत्ति क्यों न हो। इस संबंध में एक कथा याद आ रही है। एक साधु अपने शिष्यों के साथ भिक्षा मांगने जा रहा था। रास्ते में उसे चांदी का एक सिक्का दिखाई पड़ा। उसने झट से उठाया और अपने झोले में डाल लिया। शिष्यों ने जब सिक्के के बारे में पूछा, तो उसने कहा कि इसे किसी जरूरतमंद व्यक्ति को दे दूंगा। शिष्य चुप रह गए। उन्होंने उस साधु पर निगाह रखी। कई दिन बीत गए।
एक दिन उन्होंने सुना कि उनके राज्य का राजा अपने पड़ोसी राज्य पर हमला करने के लिए बहुत बड़ी सेना लेकर उसी ओर से जा रहा है। यह सुनकर साधु अपने शिष्यों के साथ उसी ओर चल पड़ा। कुछ दूर जाने पर राजा आता हुआ दिखाई पड़ा। लोगों ने राजा को बताया कि यह बहुत पहुंचे हुए संत हैं। राजा ने अपने हाथी से उतरकर उन्हें प्रणाम किया और आशीर्वाद देने को कहा। साधु ने झट से झोले से चांदी का सिक्का निकाला और राजा के हाथ पर रखते हुए कहा कि यह सिक्का मुझे पड़ा हुआ मिला था।
मैंने सोचा था कि किसी दरिद्र को दे दूंगा। लेकिन आज आपको देखकर लगा कि आपसे बड़ा दरिद्र कोई नहीं है। जिसके पास इतना बड़ा राज्य है, लेकिन जो दूसरों का राज्य हड़पने की लालसा रखता हो, वह किसी दरिद्र से कम नहीं है। राजा साधु की बात सुनकर बहुत लज्जित हुआ। वह समझ गया कि साधु क्या कहना चाहता है। उसने तुरंत अपनी सेना को वापस लौटने का आदेश दिया।
अशोक मिश्र