लोकसभा चुनाव में बहुत ज्यादा दिन नहीं बचे हैं। राजनीतिक दलों ने अपने उम्मीदवारों का चयन शुरू कर दिया है। हरियाणा में भी चुनावी गहमागहमी शुरू हो गई है। भाजपा अपना पिछला इतिहास दोहराने के लिए कमर कस कर तैयार हो गई है। हरियाणा में संभावित उम्मीदवारों के नामों पर विचार-विमर्श और मंथन करने के बाद फाइनल पैनल हाईकमान के पास भेज दिया गया है। प्रदेश से जो भी नाम भेजे गए हैं, उनमें से कुछ चेहरे नए होने की बात कही जा रही है। इसका यह मतलब है कि कुछ सांसदों का पत्ता कट सकता है। उम्मीद की जा रही है कि अगले कुछ ही दिनों में भाजपा के उम्मीदवारों की सूची जारी हो सकती है। भाजपा ने जोरशोर से अपनी तैयारियां काफी पहले से शुरू कर दी थी।
प्रदेश सरकार के मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक जनसंवाद और अन्य कार्यक्रमों को आयोजित करके जनता से संपर्क साध रहे थे। विकसित भारत संकल्प यात्रा भी जनता के बीच पहुंचने का एक सशक्त माध्यम रहा है। भाजपा और जजपा गठबंधन अगर एक साथ चुनाव लड़ता है, तो भाजपा पुराना रिकार्ड दोहरा सकती है। हालांकि आज की परिस्थितियों के आधार पर बात की जाए, तो भाजपा और जजपा के एक साथ लड़ने के आसार कम ही नजर आ रहे हैं। जजपा नेता की बार घोषणा कर चुके हैं कि वे दसों सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेंगे।
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यदि जजपा सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारती है, तो थोड़ा बहुत नुकसान भाजपा को हो सकता है। कांग्रेस में अभी तैयारियां प्रारंभिक स्तर पर हैं। ऐसा लगता ही नहीं है कि कांग्रेसी नेता चुनाव लड़ने के मूड में हैं। उनकी रुचि बस विधानसभा चुनावों को लेकर है, ऐसा उनके आचरण से प्रतीत होता है। इतना ही नहीं, कांग्रेस हाईकमान के बार-बार समझाने और चेतावनी देने के बावजूद गुटबाजी खत्म नहीं हुई है। हुड्डा पिता पुत्र अपनी अलग ढफली बजा रहे हैं, तो किरण चौधरी, शैलजा कुमारी और रणदीप सुरजेवाला अपना अलग राग अलाप रहे हैं। पार्टी प्रभारी दीपक बावरिया की कोई सुनने को तैयार नहीं है।
कुमारी शैलजा द्वारा निकाली जा रही जनसंदेश यात्रा में हुड्डा गुट ने शामिल होने की जरूरत नहीं समझी। यद्यपि भारत जोड़ो न्याय यात्रा निकाल रहे राहुल गांधी ने हरियाणा के नेताओं को सख्त निर्देश दिया था कि वे अपने मतभेद भुलाकर एक दूसरे का सहयोग करें और हर कार्यक्रम में दोनों गुट शामिल हों। लेकिन अभी तक राहुल गांधी के निर्देश पर किसी ने अमल किया है, यह देखने को नहीं मिला है। यदि कांग्रेसी नेताओं की यह हालत रही, तो भाजपा अपना पुराना इतिहास दोहराने में जरूर सफल हो जाएगी। इन नेताओं की आपसी फूट का कहीं न कहीं फायदा भाजपा को मिलना तय है। कांग्रेसी अपनी फूट के कारण हारेंगे।
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